________________ OsmeensusandesSARASTRA श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलषयन्तीचरित्रम् Sensusantuseossessenten भुवं पान्ति इति भूपा: भूपानां स्वरूपाणिभूपस्वरूपाणि भूपस्वरूपाणां परिकीर्तनं भूपस्वरूपपरिकीर्तनंगवितुं कथयितुं आरेभे प्रारब्धवती॥४९॥ सरलार्थ :- तत्पश्चात् अन्त: पुरस्थ व्दारपालिका पुत्र्याः दमयन्त्याः जनकस्य वचनात् भूपस्वरूपकीर्तनं कर्तु आरेभे // 49 / / ગુજરાતી:- પછી અંત:પુરની પ્રતિહારી દમયંતીના પિતાની આજ્ઞાથી તે રાજાઓનાં વૃત્તાંતનું વર્ણન કરવા લાગી. 49. हिन्दी :- फिर अन्त:पुरकी प्रतिहारी दमयन्ती के पिता की आज्ञा से उन राजाओं के स्वरूप का वर्णन करने लगी। // 49 // मराठी:- नंतर अन्तःपुराची द्वारपालिका दमयन्तीच्या वडिलांच्या आज्ञेवरून त्या राजांच्या स्वरूपाचे वर्णन करू लागली. // 49 // English :- The chambermaid with the permission of the king entered along with Damyanti and started introducing the kings and princes one by one. अयं काशीपति: रम्ये। रणस्फूर्जभुजाबलः। यघशस्तटिनी गडाव्याजात् त्रिपथवाहिनी // 50 // अन्वय :- हे रम्ये! रणस्फूर्जभुजाबल: अयं काशीपति: अस्ति। यधशस्तटिनी गडाव्याजात् त्रिपथवाहिनी अस्ति॥५०॥ विवरणम् :-हे रम्ये। सुन्दरि दमयन्तिा रणे युद्ध स्फूर्जद रणस्फूर्जदा भुजयो: बलं भुजाबलम् / रणस्फूर्जद् भुजाबलं यस्य स रणस्फूर्जभुजाबल: अयं काश्याः पतिः काशीपतिरस्ति / यस्य यशो यद्यशः / यद्यश एव तटिनी नदी यदयशस्तटिनी।गाया: ब्याजो मिषं गंजाव्याजस्तस्मात् गडाव्याजात् गामिषात् / त्रयाणां पथां समाहारस्त्रिपथम्। त्रिपथेन वहतीत्येवंशीला त्रिपथवाहिनी अस्ति। यथा गङ्गा त्रिभिः पथिभिर्वहति / तथैवाऽस्य काशीराजस्य यशोनवी त्रिभुवनवाहिनी वर्तते / तेनेयं गजान पर तन्मिषात् काशीराजयशोनघेव वहतीत्यर्थः // 50 // सरलार्थ :- हे सुन्दरि। अयं वस्य भुजाबलं समराङ्गणे स्फूर्जति स काशीपति रस्ति / तस्य यशस्तटिनी गामिषात् त्रिभुवनवाहिनी वर्तते। अस्व कीर्तिः त्रिलोक्यां प्रसृताऽस्ति // 50 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust