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________________ RevraBadragoparaspora श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् SodesRANBajresBGRA98080902 po हिन्दी :- तब नल अपने मन में विचार करने लगा कि, "अरे पापी नला तेरा नाश क्यों नही होता? वास्तव में दमयंती तो नही? यदि वह नही तो फिर नाटक में उसका पात्र कहां से आया? // 714 // मराठी :- तेव्हा नळ मनातच म्हणाला की, "अरे पापी नला। तू का नाश पावत नाही? खरोखर दमयंती आता जगात नाही? जर असती तर नाटकात तिची भूमिका कशी आली असती!" ||714|| English :- At this, Nal began to curse a sinner in himself. Then he wondered as to how this play is being acted out, when the actoress is not Damyanti in person. 96 पिङ्गल: स्माह सक्रोधं किमार्येऽनार्यकर्मणा। कार्य तेन श्वपाकेन सार्थेशाभ्यर्णमेहि तत् // 715 // अन्वयः- पिङ्गल: सक्रोधम् आह स्म। आफै। अनार्यकर्मणा श्वपाकेन तेन किं कार्यम् तत् सार्थेशाभ्यर्णम् एहि // 715 // 卐विवरणम्:- पिङ्गल: क्रोधेन सह यथा स्यात् तथा सक्रोध आह स्म ब्रवीति स्म * आर्ये। न आर्यम् अनार्यम् / अनार्य कर्म यस्य सः अनार्यकर्मा, तेन अनार्यकर्मणा श्वानं पचतीति श्वपाक: चाण्डाल: तेन श्वपाकेन चाण्डालेन तेन नलेन तव किं कार्य किं . प्रयोजनम् / अनार्योंचितकर्मकारिणा चाण्डालेन तेन नलेन तव किं प्रयोजनम्। तत् सार्थस्य ईश: सार्थेश:। सार्थेशस्य अभ्यर्ण सार्थेशाभ्यणं धनदेवसमीपम् एहि आगच्छ॥७१५॥ विसरलार्य:- पिङ्गलः क्रोधेन सह अब्रवीत्-आ। अनार्यकर्मणा चाण्डालेन तेन बलेन तव किं प्रयोजनम् तम् सार्दपतिं पनदेवं प्रति आगच्छ।।७१५|| મા ગુજરાતી:-તારે પિંગલ તેણીને કોલસહિત કહે છે કે, હે આર્યો દુષ્ટ કાર્ય કરનારા તે ચાંડાલ જેવાનલ સાથે હવે તારે શું પ્રયોજન છે? માટે તું સાર્થપતિની પાસે ચાલ. 715 AFAS Sidhkashan.. .
SR No.036462
Book TitleNal Damayanti Charitrayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size93 MB
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