________________ OrenesssanSASRARASHRS श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलावभयन्तीचरित्रम् SRISROSAROKARSAMBAHARASumarg अत्रान्तरे सुरः कोऽपि स्वर्गादागत संसदि। दमयन्ती प्रणम्पोचे भुकटीकृतपाणिकः // 601 // अन्वय :- अत्रान्तरे कोऽपि सुर: स्वर्गात् संसाद आगत्य दमयन्तीं प्रणम्य मुकुटीकृतपाणिक: ऊचे // 601 // विवरणम् :- अत्रान्तरे एतस्मिन् अन्तरे कोऽपि सुर: देव: स्वांत देवलोकात संसदि सभायाम् आगत्य दमयन्त प्रणम्य वन्दितान मुकुटौ अभुकुटौ। अमुकुटी मुकुटौ कृती मुकुटोकती मुकुटीकृती पाणी हस्ती येन सः मुकुटीकृतपाणिक: मुकुटीकृतहस्त: बलाञ्जलि: ऊच अभि00 सरलार्थ :- अत्रान्तरे कोऽपि देवः स्वाद सभावाभावगतः / दमयन्तीप्रणम्व रब्दारतिः अवदत् / / 101 / / કે ગુજરાતી:-એવામાં કોઇક દેવસ્વર્ગમાંથી સભાની અંદર આવી, દમયંતીને નમીને, તથા પોતાના બન્ને હાથોને મુકુટરુપ (જોડીને) १९१४बा13,1६०५॥ हिन्दी :- इतने में कोई देव स्वर्ग में से सभा के अंदर आया और दमयंती के सामने झुककर और अपने दोनो हाथ जोडकर कहने लगा कि,॥६०१॥ इमराठी :- इतक्यात कोणी एक देव स्वर्गातून राजसभेत आला व दमयंतीला नमस्कार करून दोन्ही हात जोहन म्हणाला-11६०१॥ English : Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC. Gunratnasuri M.S.