________________ S OTOSSASARASAROBARDRAPase श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम)NORTANTRIBodeoRAPARISM सुगुरोर्वासनां चेतो, मे धत्ते यदि सर्वदा॥ ततो राक्षसि नासि त्वं, भ्रश्यतां ते मनोरथैः // 471 // अन्वय :- यदि सर्वदा मे चेत: सुगुरो: वासनां धत्ते तत: हे राक्षसि! त्वं नासि ते मनोरथैः भ्रश्यताम् // 47 // EEEEEEEEEEEEEEEF विवरणम :- यदि सर्वदा अहर्निशं मे मम चेत: हदयं शोभनश्चासौगुरुश्च सुगुरुः तस्य सुगुरोः वासनांधत्ते। तत: तहिशक्षामित्र नअसि। ते तव मनोरथैः अश्यतां नश्यताम् // 47 // सरलार्थ :- यदि सर्वकाले मम हृदयं, सुगुरोः वासनां पत्ते / तत: हे राक्षसि। त्वं न असि तव मनोरथैः नश्यताम् // 471 / / ગુજરાતી:- જે મારું હૃદય સુગુરુ પ્રત્યે પોતાના મનોરથને હલેશા ધારણ કરતું હોય, તો તે રાક્ષસી ! અહીં તારી હાજરી નહો અને मनोरथो नटयागो.॥४७१॥ REF555555 हिन्दी:- जो मेरा हृदय सुगुरु के प्रति खुद के मनोरथ को हमेशा धारण करता हो, तो हे राक्षसी। यहाँ तेरी उपस्थिति न हो और तेरी इच्छा नष्ट हो।४७१॥ मराठी :- जर माझ्या हृदयात सुगुरु नेहमी राहात असतील तर हे राक्षसि! इथे तुझी उपस्थिती नको? तुझे मनोरथ नष्ट होवोत." // 471 // English - She then continues saying that if her heart is only filled with devotional thoughts of a perceptor, than let the ogress dissappear and let her desire be anhilated. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. . Jun Gun Aaradhak Trust