________________ HTTEAndreasuspnaasporasgodश्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् AddessagevBTSSBABUSBogender विपाकमेतं कोपस्य, हं हो पश्यत पश्यत॥ तपोनिष्ठितदेहोऽपि। सर्पतामाप कर्परः॥४३८॥ अन्वय :- हो। एतं कोपस्य विपाकं पश्यत पश्यत? तपोनिष्ठितदेहः अपि कर्पर: सर्पताम् आप // 438 // विवरणम् :- हहोभोः। एतं कोपस्य क्रोधस्य विपाकं परिणाफलं पश्यत पश्यत अवलोकयत। तपसि निष्ठित: तपोनिष्ठित: तपोनिष्ठित: देहः यस्य सः तपोनिष्ठितदेहः अपि कर्पर: सर्पस्य भाव: सर्पता तां सर्पतां आप प्राप॥४३८॥ सरलार्थ :- रे। एतं क्रोषस्य फलम् अवलोकयत अवलोकयत / तपोनिष्ठितदेहः अपि कर्पर: तापसः सर्पताम् आप // 438 // કે ગુજરાતી :- અરે! તમો સઘળા આ કોધનો વિપાક જુઓ!જુઓ!તપ તપી તપીને શરીરને બાળી નાખ્યા છતાં પણ હું કર્પર તાપસ સર્ષપણાને પ્રાપ્ત થયો હતો. I438 हिन्दी :- अरे! तुम सब यह क्रोध का परिणाम देखो! देखो! तप तपकर शरीरको जलाडाला फिर भी मैं कर्पर तापस सर्परूपको प्राप्त हुआ। // 438 // मराठी:- लोक हो! तुम्ही सर्वजण क्रोधाचा परिणाम पाहा? पाहा? तपश्चर्या करून करून शरीर सुकवून टाकले. तरी पण मी हा कर्परतापस सर्प बनलो. // 438 // A English :- He continues saying that when he had done those severe penances and thus burnt his body in the process, but still had to undergo the hideous form of a snake in his next life just for the sake of his wrathful anger.