________________ ORPHANSARASIRSANASANAPAN श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्नीनलक्ष्मयन्तीचरित्रम् ANDSANBRasaseasesaHANNAPANNA भौजङ्गंभोगमाकृष्य, बिलादालम्ब्य तं नगे। जजल्प कोप: केनापि, भो भो: कार्यो न धीमता // 437 // अन्वय:- बिलात् भौजङ्गं भागं आकृष्य तं नगे आलम्ब्य जजल्प भो: भो: धीमता केम अपि कोप:न कार्यः॥४३७॥ SEE विवरणम् :- बिलात् भुजङ्गस्य सर्पस्य अयं भौजङ्गः ते भौजङ्गं साँप भोगं शरीरं आकृष्य निष्कास्य तत् शरीरं नगे पर्वते आलम्ब्य जजल्प अजल्पत्-भोः भोः धी: बुद्धिः अस्य अस्ति इति धीमान् / तेन धीमता केन जनेन अपि कोपः क्रोधःन कार्य: कर्तव्यः॥४३७॥ OFFFFFFFFE सरलार्थ :- बिलात् सर्पस्व शरीरं निष्कास्य तत् शरीरं पर्वते आलम्ब्य अवदत्-रे रे। पीमता केन अपि कोप: न करणीयः / / 437|| - ગુજરાતી:- પછીતે દેવ(પોતાનું પૂર્વભવનું) સર્પનું મૃતશરીર દરમાંથી ખેંચી લાવીને, તથા તેને પર્વત પર લટકાવીને સર્વને કહેવા લાગ્યો કે, હે લોકો કોઈ પણ બુદ્ધિમાન માણસે ક્રોધ કરવો નહીં. ૪૩ણા हिन्दी :- फिर वह देव (खुद के पूर्वभव के) सर्प का मृत शरीर बिल में से खींचकर उसे पर्वत पर लटका कर सबको कहने लगा कि. हे लोगो। किसी भी बद्धिमान आदमी को क्रोध नहीं करना चाहिए। // 437 // मराठी :- पूर्वजन्मीचे आपले सापाचे शरीर बिळातून बाहेर काढून पर्वतावर लटकवून तो देव म्हणाला- हे लोकहो। कोणत्याही बुबिमान माणसाने क्रोष करू नये. // 437|| glish - Then the God pulled out the dead body of the snake of his past life from the burrow and hanged it on the peak and told the people that a clever man should never get angry. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust