________________ CATE M BESARIES श्रीमयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलवमयन्तीचरित्रम् SRANSatisement अधुनावधिना मात-विदित्वा त्वामिह स्थिताम॥ धर्मवात्रीं नमस्कत, तव शिष्योऽहमागमम् // 43 // अन्धव:- हेमातर् / अधुना अहं तव शिष्य: अवधिना त्वाम् इह स्थितां विदित्वा धर्मदात्रीं त्वां नमस्कतुं इह आगमम् // 13 // विवरणम्:-हेमातर् / अधुना अहं तव शिष्यः अवधिना अवधिज्ञानेन त्वाम् इह स्थितां विदित्वा शात्वा धर्मस्य पात्री धर्मदात्री तां धर्मधात्रीं नमस्कतुं वन्दितुं शह आगमम।।४३४॥ समलार्थ :- हे मातर। अधुना अहं तव शिष्य: अवपिज्ञानेन त्वाम् इह ज्ञात्वा धर्मदात्रीं त्वां वन्दितुम् इह आगमम् / / 434|| બજરની છે માતાજી આ સમયે અવધિજ્ઞાનથી તમોને અહીં રહેલા જાણીને તમારો શિષ્ય એવો હું તમો ધર્મ આપનારાને ( न) नमार 329 // माटे सापेको छु.॥४ // हिन्दी: हेमाताजी। इस समय अवधिज्ञान से आपको यहाँ जानकर आपका शिष्य मैं धर्मगुरुणी को नमस्कार करने यहाँ आया हूँ। // 434 // 灣骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗“微 मराठी:- हे माते / आता मी अवविज्ञानाने त् येथे आहेस असे जाणले आणि शिष्य म्हणून धर्माची दीक्षा देणाचा तुला वन्दन करण्यासाठी येथे आलो. // 434|| English - So, he says that through his Avathigyan he had known that she was residing here. So he had come down to bow down to her and taking her as a teacher, to be her student. -