________________ ERNETassesranAsav श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् SRASANNosadaayeasetes तथाकर्ण्य मयाऽचिन्ति, जीवहत्यारत: सदा॥ निःशूको दन्दशूकोऽहं, कस्यां यास्यामि दुर्गतौ॥४२८॥ अन्वय:- तद् आकर्ण्य मया अचिन्ति। सदा जीवहत्यारत: नि:शूक: अहं दन्दशूक: कस्यां दुर्गतौ यास्यामि // 428 // विवरणम:- तव आकर्ण्य निशम्य भया अचिन्ति व्यचारि। सदा नित्यं जीवानां प्राणिनां हत्या: जीवहत्या:जीवहत्यास रत: तत्परः निरतः जीवहत्यारत: जीवहिंसानिरत: नि:शूको निश्शूल:शूलरहित: अहं कुत्सितं दशति इति दन्यशूक: सर्पः कस्यां दृष्टा चासौ गति: च दुर्गति: तस्यां दुर्गतौ यास्यासि गमिष्यामि // 428 // TEEEEEEEEEL सरलार्य :- तच्छुत्वा मया व्यचारि सदा जीवहत्यातत्परः निश्शूल: अहं दन्दश्क: सर्पः कस्यां दुर्गतौ यास्वामि // 428 // - ગુજરાતી:- તે સાંભળી મેં વિચાર્યું કે જીવહિંસામાં જ હમેશા આસક્ત થયેલો હું નિર્દય સર્પ (કોણ જાણે) કઈ દુગતિમાં જઇશ. 428 हिन्दी :- यह सुनकर मैने विचार किया कि जीवहिंसा में हमेशा आसक्त हुआ मैं निर्दयी सर्प (कौन जाने) किस दष्ट गति में जाकयाँ // 428 // 她听听听听听听哪呢呢呢呢呢呢呢呢呢呢 मराठी:- ते ऐकन मी विचार करू लागलो की, मी तर सतत प्राण्यांची हिंसा करण्यात तत्पर असतो. हिंसा करूनही मला दःख होत नाही. अत्यंत निर्दय असा मी सर्पयोनीतून कोणत्या दुर्गतीत जाईन. // 428 // English - He wondered that as he was a cruel and a bolstrious being who had killed so many lives in which a torturous life will he be reincarnated later.