________________ ORPHANHAPAHARANASANAPAN भाजयशखरसारावराचत मानलपणचन्ताधारण AAAAAAAYASHA सार्थवाहोऽथा तन्नौवा- स्थापयन्नागरं वरमा / दभायन्तीती गुरुमिवाउनलसा: पर्युपासितुम् // 397 // अन्वय:- अथ अनलस: सार्थवाह: दमयन्तीं गुरुम् श्या पर्युपासितुं तत्र एक वरं नगरम् अस्थापयत् // 397 // विवरणम् :- अथ वसन्त: सार्थं वहति इति सार्थवाह: न विद्यते अलस: यस्य स; अनलस: प्रमादरहित: सन् गुरुम् इद दमयन्तीं . पर्युपासितुं सेवितुं तत्र तस्मिन् पर्वते एव वरं श्रेष्ठं नगरम् अस्थापयत् स्थापयामास // 397 // सरलार्य :- अथ वसन्तसार्थवाह: तां दमयन्तीं प्रमादरहितः सन् गुरुम् इव आराधयितुं तस्मिन् पर्वते एव श्रेहं नगरम् अस्थापयत् ||397|| ગુજરાતી :- પછી વસંત સાર્થવાહે પ્રભાદરહિત દમયંતીની ગુરુની પેઠે આરાધના માટે ત્યાં જ એક સુંદર નગર સ્થાપના કર્યું, ( सा ) // 8 // हिन्दी : फिर वसंत सार्थवाहने प्रमादरहित गुरु के समान दमयन्ती की आराधना करने के लिए वहीं पर एक सुंदर नगर स्थापन किया // 397 // मराठी:- नंतर वसंतसार्थवाहाने दमयंतीची प्रमादरहित गुरुप्रमाणे आराधना करण्यासाठी तेथेच एक सुंदर नगर स्थापन केले. // 397|| English:- Taking Damyanti as a Guru, Vasant built a city at that very place, so that she will not have any problem during her stay and he can venerate and pay his homage and reverence to Damyanti. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust