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________________ ORNISHRASESSISTANTRANSISTS श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् Reservepassedressndasardar हिन्दी :- फिर उससार्थपतिने भी उसे अपनी माता के समान मान कर भक्तिपूर्वक नमस्कार कर के पूछा कि, हे माताजी! आप कौन हो? और इस जंगलमें क्यों भ्रमण कर रही हो? // 344 / / मराठी:- नंतर तो वसन्त सार्थवाह पण दमयन्तीला स्वत:च्या आईप्रमाणे भक्तिपूर्वक नमस्कार करून विचारू लागला-हे माते। त् कोण आहेस? या वनात का भटकतेस? / / 344 / / English :- Then the chieftain of the encampment taking Damyanti as his own mother and with utmost devotion and veneration, bowed down to her and asked her about her identity and as to why she was rambling alone in such a dangerous forest. सोदरस्येव तस्याथ, सार्थनाथस्य भैम्यपि॥ जन्मत: कथयामास, वृत्तान्तम् सर्वमात्मनः // 345 // अन्चय :- अथ भैमी अपि तस्य सोदरस्येव सार्थनाथस्य जन्मत: आत्मन: सर्ववृत्तान्तम् कथयामास // 345 // विबरणम् :- अथ भीमस्य अपत्यम् स्त्री भैमी दमयन्ती अपि तस्य समानम् उदरम् यस्य स: सोदरः तस्य सोदरस्य इव भ्रातुः इव सार्थस्य नाथ: सार्थनाथ: तस्य सार्थनाथस्य जन्मत: आरभ्य आत्मन: स्वस्य सर्वश्चासौ वृत्तान्तश्च सर्ववृत्तान्त: तम् सर्ववृत्तान्तम् सर्वाअखिलांकथाम कथयामास अकथयत् // 345 // सरलार्थ :- अथ दमयन्ती अपि तस्य भ्रातुः इव सार्थनाथस्य जन्मत आरभ्य स्वस्य अरिखलाम कथाम् अकथयत्।।३४५|| ગુજરાતી :- પછી દમયંતીએ પણ તે સાર્થવાહને પોતાના સહોદર ભાઇ સમાન માનીને, છેક જન્મથી માંડીને પોતાનું સઘળું વૃત્તાંત કહી સંભળાવ્યું. 345 हिन्दी :- फिर दमयंती ने भी उस सार्थवाह को अपना सहोदर भाई मानकर, जन्म से लेकर अपना पूरा वृत्तांत कह सुनाया // 345 //
SR No.036462
Book TitleNal Damayanti Charitrayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayshekharsuri, Sarvodaysagar
PublisherCharitraratna Foundation Charitable Trust
Publication Year
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size93 MB
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