________________ S NYOOBravenouseotuveoduserous श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरिश्रम् PRASADRISPENDRAPRASADIO एकाकिनीमिमां भर्तृ - रक्तां भक्तां महासतीम् / / वने सन्त्यज्य निर्यासि, हहा विश्वस्तवश्चक॥ युग्मम् // 28 // अन्वय :- हा विश्वस्तवश्चक भर्तृरक्तां भक्तां महासतीम् एकाकिनीम् इमां बने सन्त्यज्य निर्यासि // 28 // विकरणम् :- हा विश्वस्तस्य वधक: विश्वस्तवधक: तत्सम्बुद्धौ हे विश्वस्तवथका भर्तरि रक्ता भर्तृरक्ता तां भर्तृरक्ता पत्यनुरागिणीं भक्तांभजनशीलां, महती चासौ सतीच महासती तां महासतीम्, एकाकिनीम् इमांदमयन्तीं वने विपिने सन्त्यज्य निर्वासि निर्गच्छासि॥२८॥ सरलार्थ :- हहा विश्वस्तवञ्चक भर्तृरक्तां भक्तां महासतीम् एकाकिनीम् इमां दमयन्तीं वने मुक्त्वा निर्गच्छसि // 284|| EE - ગુજરાતી:- (પોતાના સ્વામીમાં રત બનેલી, ભક્તિવંત, અને મહાસતી એવી આ દમયંતીને આવા (ભયંકર) જંગલમાં એકલી छोडीन, अरे विश्वास ! (84) याल्यो छ ! हिन्दी :- स्वामी में अनुरक्त पतिभक्त और महासती ऐसी इस दमयंती को ऐसे भयंकर वन मे एकाकी छोड कर, अरे विश्वासघाती तू क्यों चला जा रहा है // 284 / / मराठी :- अरेरे। हे विश्वास यातक्या नला! पतीवर प्रेम करणाऱ्या, पतीच्या भक्तीत (सेवेत) रमणाऱ्या, पतिव्रता दमयन्तीला एकटीलाच - वनात सोहन त् निघून जातोस. // 284|| English:- Damyanti who loves her husband wholeheartedly, who is pious and who believes in just one husband, has been left by Nal, by deceiving her in this horrorful forest. ME