________________ ARTHAMANARRANPersodevras श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् RajasthaATRINARISTIANRela इति ध्यात्वावदत् कर्म - चण्डाल: सैष नैषधिः॥ याति देवि कठोरात्मा वजेणेव विनिर्मितः // 28 // पर अन्यय :- इति ध्यात्वा अवदत्-हे देवि! सैष कर्मचण्डाल: नैषधिः वज्रेण इव निर्मित: कठोरात्मा याति // 28 // विवरणम् :- इति एवं ध्यात्वा विचार्य अवदत् उवाद अवादीव-हे देवि। स एषः कर्मणा चण्डाल: कर्मचण्डाल: निषषस्य अपत्यं पुमान नैषधि: नल: वज्रेण इव निर्मित: रचित: कठोरः निष्ठुरः आत्मा यस्य स: कठोरात्मा यातिगच्छति॥२८॥ सरलार्य :- एवं विचार्य अवदत् हे देवि। सैष कर्मचण्डाल: नेपपिः नल: वजेण इव निर्मित: कठोरात्मा गच्छति // 28 // SEEEEEEEEEEF5555555 ગજરાતી:- એમ વિચારીને (મનમાં) કહેવા લાગ્યો કે, હે દેવી! આ કર્મચંડાલ નૈષધપતિનલરાજને જાણે વજળી પડ્યો હોય નહી! એમ કઠોર હૃદયવાળો બની ચાલ્યો જાય છે. 282 दी:- ऐसा विचार करते हुए विधाता से कहते है कि, हे देवी! यह कर्मचण्डाल निषधपुत्र नलराजा मानो पत्थर का बना हो। कठोर हृदयवाला होता जा रहा है||२८२॥ मराठी:- असा विचार करून नलराजा म्हणाला- हे देवि। हा कर्मचांडाल निषधाधिपति नलराजा जण वजानेच यहविला आहे. तो अतिशय कठोर निर्दय बनून जात आहे. // 282 / / English :- So Nal addressing himself as a scavenger who is the cheiftain of Naushad, takes himself of being a man of iron who is heartless and walks off with a heavy heart of memories.