________________ 888888888 GSTRAgadragoasporspora श्रीजयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् 8 इत्युक्त्वालोक्य वक्त्राब्जं, देव्या: साश्रु व्यचिन्तयत् // अपश्यद्यां न सूर्योऽपि, शङ्कयेव पुरा मम // 280 // अन्वय:- इति उक्त्वा देव्या: वक्त्राब्जम् आलोक्य साश्रु अचिन्तयत्। पुरा सूर्य: अपि मम शङ्कया इव यां न अपश्यत् // 28 // विवरणम् :- इति एवं उक्त्वा प्रणित्या देव्या: दमयन्त्या: वक्त्रम् एव अब्जं वक्त्राब्जं मुखकमलम् आलोक्य निरीक्ष्य अश्रुभिः सह वर्तते इति साश्रु व्यचिन्तयत् व्यचारयत् / पुरा पूर्व सूर्यः अपि दिवाकरः अपि मम शङ्कया इव यां दमयन्तीं न अपश्यत्न ददर्श // 28 // सरलार्य :- एवं भणित्वा देव्या दमयन्त्याः मुखकमलं निरीक्ष्य साश्रु व्यचारयत्। पूर्व सूर्यः अपि मम शङ्कया इव दमयन्तीं न अपश्यत् li૨૮૦ગા. ગુજરાતી:- એમ કહી દમયંતીના મુખકમલ તરફ જોઈને, આંખોમાં આંસુ લાવી નલરાજ વિચારવા લાગ્યો કે, જાણે પૂર્વે મારી શંકાથી (કારાથી ડરીને) જેને સૂર્ય પણ જોઈ શક્યો નથી, 280. हिन्दी :- ऐसा कह कर और दमयंती के मुख की ओर देख कर, आँखो में आंसुलाकर नलराजा विचार करने लगा कि, पहले मेरी शंका से (मुझसे डरकर) जिस को सूर्य ने भी देखा नही है / / 280 // - मराठी :- असे म्हणून आणि दमयंतीच्या मुख कमलाकडे पाह्न, डोळ्यात अश् आणन नलराजा विचार करू लागला की, पूर्वी माझ्या भीतीनेच जण सूर्यसुखा पाहू शकत नव्हता. / / 280 / / English : So saying thus, he sees the soft face of Damyanti and bringing tears in his eyes, he wondered if the sun, having understood, that he will be leaving Damyanti left off from the east and set itself in anger in the west.