________________ REAM PRASusandasentsRANBIRMS श्रीयशेखरसूरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम् SReseaRABINARIBANARIRAL तवं मुखमादाय, हित्वनां वल्लभार्मापा। अज्ञातचर्ययैवाहं, भ्रमाम्येकोऽवधूतवत् // 26 // अन्वय :- तद् वल्लभाम् अपि हित्वा ऊध्र्व मुखम् आदाय अज्ञातचर्ययैव अहम् एक: अवधूतवत् भ्रमामि // 26 // विवरणम् :- तद् तेन कारणेन वल्लभाम् अपि पत्नीम् अपि हित्वा त्यक्त्वा ऊध्र्व मुखं आदाय कृत्वा न शाता अज्ञाता अज्ञाता चासौ चर्या च अज्ञातचर्या तया अज्ञातचर्यया एव अहम् एक: अवधूतेन-तुल्यं अवधूतवत् योगीवत् प्रमामि॥२६॥ सरलार्थ :- तेन कारणेन पत्नीम् अपि त्यक्त्वा ऊर्वमुखं आदाय अज्ञातचर्ययैव अहम् एक: योगीवत् भ्रमामि / / 264|| અને ગુજરાતી:- માટે હવે આ સ્ત્રીને પણ તજીને, ઉચું મુખ રાખી, કોઈને ઓળખી શકે એવો વેબદલો કરીને એકલો જ હું અવધુત જોગીની પેઠે (પૃથ્વી પર) ભ્રમણ કરું. 264. हिन्दी :- इसलिये अब इस स्त्री को छोडकर ऊंचा मुँह कर, कोई भी पहचान न पाये ऐसा वेष परिधान कर मैं अकेला ही इस पृथ्वी पर भ्रमण करूंगा॥२६४॥ मराठी:- म्हणन आता मी या स्त्रीला पण सोहन उंच मुख करून, कोणी पण ओळखणार नाही असा पोषाख परिधान करून मी एकटाच अवताप्रमाणे या पृथ्वीवर फिरत राहीन. // 264 // English - Then he decides to leave Damyanti and with a feeling of self-respect and disguising himself he shall wonder about alone without identifing himself. 骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗骗激 Meen uswasterstuRISSARDARB/ 234 JetsROPAROSARORISRPRISEMERVANTRASIBEOS