________________ 5 One And SRIVASTARPRASHere श्रीजयशेग्वरसरिविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम Indreasedodendussocussagsar 卐 विवरणम् :- नल: अश्रुणा सह वर्ततेऽसौ साश्रुः रूदन अचीकथत् अकथयत् कथयामास / अरण्यं विपिनं योजनानां शतं शतयोजनम् अस्ति। हे देवि! अद्यापि अस्य अरण्यस्य विंश एव भाग: आवाभ्याम् अतिचक्रमे उल्ललचे॥२४७॥ सरलार्य :- नल: साश्रुः अकथयत्-अरण्यं शतयोजनं वर्तते। हे देवि। अयापि अस्व अरण्यस्व विंश एव भाग: आवाभ्याम् अतिचक्रमे // 247|| ગુજરાતી:- ત્યારે નળરાજા આંખોમાં આંસુ લાવી કહેવા લાગ્યો કે, આ જંગલ એકસો વજનનું છે, અને હે દેવી! હજુ આપણે તેનો વીસમો ભાગ જ ઓળંગી શક્યા છીએ. 247 हिन्दी :- तब नलराजा आँखो में आँसूलाकर कहने लगे कि, यह जंगल एक सौयोजन का है, और हे देवी! अभी तक हमने उसका . बीसवां ही भाग पार किया है / / 247|| मराठी:- तेव्हा नलराजा होळयात अश्रू आणून म्हणाला-हे देवि। हे जंगल शंभर योजन आहे, आपण अजून त्याच्या विसावा भाग ओलांडला आहे. ||247|| English :- At this Nal's eyes were filled witih tears and he said to her that the forest was a hundred yojan long (800 miles) and they had only crossed twenty yojans. (160 miles) 555 तापमल्पय मार्तण्ड / भूमे कोमलताम् भज॥ पन्था संहर दीर्घत्वमासन्नीभव कुण्डिन // 248 // . अन्वय :- मार्तण्डा तापम् अल्पया हे भूमे। कोमलतां भजा हे पन्थाः। दीर्घत्वं संहर। हे कुण्डिन / आसन्नीभव // 248 // विवरणम् :- हे मार्तण्ड सूर्य। त्वं तापम् उष्णताम् अल्पय अल्पं कुरुष्या हे भूमे। त्वं कोमलस्य भाव: कोमलता तां कोमलतां भज अङ्गीकुरुष्व / पन्थाः। मार्गी त्वं दीर्घस्य भाव: दीर्घत्वं संहरा हे कुण्डिना त्वम् न आसन्न: अनासन्नः। अनासन्न: आसन्न: भव आसन्नीभव समीपवर्ती भव // 248 // P.P.AC.Gunratnasun M.S.