________________ ORATrrpot violejgarwdergoav श्री जयशंग्यरसारविरचितं श्रीनलदमयन्तीचरित्रम SuprevenguesearnguagrPANNA SEEEEEEESota स्नातोत्थेवाथ स्वेदाम्भ:प्लुतागी भीमभूः श्रमात् // कियदद्यापि गन्तव्यमित्यूचे नैषधिं मुहुः॥२४६॥ अन्यय:- अथ श्रमात् स्वेदाम्भ:प्लुताङ्गी भीमभू: स्नातोत्था इव अद्यापि कियद् गन्तव्यम् इति नैषधिं मुहुः ऊचे॥२४६॥ विवरणम् :- अथ श्रमात् स्वेदस्य अम्भ: जलं स्वेदाम्भः। स्वेदाम्भसा प्लुतम अङ्गशरीरंयस्था: सास्वेवाम्भ:प्लुताङ्गी। भीमात्भवति इति भीमभूः भीमाङ्गजा दमयन्ती। आदौ स्नाता पश्चाद् उत्था स्नातोत्था इव अद्यापि किय गन्तव्यं गमनीयम् इति एवं निषधस्य अपत्यं पुमान् नैषधि: नल: तं नैषधिं मुहुः वारंवारमूचे अवोचत् // 246 // सरलार्थ :- अथ श्रमात् स्वेदाम्भ:प्लुतानी दमयन्ती स्नातोत्था इव अयापि किय गन्तव्यम् इति नलं वारंवारम् अपृच्छत् / / 246 // ગુજરાતી :- વળી જાણે સ્નાન કરીને ઊઠી હોય એવી રીતે થાકને લીધે પસીનાથી ભીંજાયેલા શરીરવાળી દમયંતી, હજ કેટલુંક ચાલવાનું છે? એમ વારંવાર નળરાજને પૂછવા લાગી..૨૪૬ हिन्दी :- जैसे की स्नान करके उठी न हो। इसी तरह पसीने से भीगी हुई दमयंती बारबार नलराजा से पूछने लगी, कि और कितना चलना बाकी है // 246 / / मराठी :- नंतर श्रमामुळे सर्व शरीर यामाने ओलेचिंब झाल्यामुळे जण काय नुकतेच स्नान करून बाहेर आलेली दमयन्ती अजून किती चालावयाचे आहे! असे सारखे नलराजाला विचारू लागली. // 246 // English :- Damyanti was drenched with sweat as though she had just, had a bath. Then the tired Damyanti kept on asking Nal again and again as to how long a journey they had to travel more. 飞听听听听听听听听听听听听听听听听听“最 अचीकथनल: साश्रु-ररण्यं शतयोजनम्॥ विंश एव हि भागोऽस्याद्यापि देव्यतिचक्रमे // 247 // अन्वय:- नल: साश्रु: अचीकथत् अरण्यं शतयोजनम् अस्ति।हे देवि! अद्यापि अस्य विंश एव भाग: अतिचक्रमे // 27 // ___PP.AC. GunratnasuriM.S.