________________ देखकर वाघ, बिल्ली को देखकर चूहा, मयूर को देखकर सर्प जैसे शक्ति हीन बन जाते हैं, वही दशा राक्षसी की हुई, उसके सब प्रयत्न वेकार गये तव दमयंती ध्यानस्थ हुई, आंखे बंद की और मन में अरिहंत परत्मात्मा, मुनिराज तथा जैन धर्म का ध्यान कर स्वस्थ हुई वह वोली। (1) यदि मेरा आन्तरिक मन भी मेरे पति नलराजा को छोड़कर दूनरे पुरुष मैं न लगा हो तो मेरे सतीत्व के प्रभाव से हे राक्षसी तुम हतप्रभ बन जाओ। (2) जिसके नामस्मरण मात्र से रोग, शोक, आधि, व्याधि दूर हो जाति है, वे 18 दोषरहित केवलज्ञान के मालिक अरिहंत परमात्मा यदि मेरे मन में वसे हुए हो तो राक्षसी तुम्हारी आशा निराशा में वदल जाओ। (3) मन-वचन काया से कृत कारित तथा अनुमोदित, देवयोनि, तिर्यचयोनि और मनुष्ययोनि के जीवों के साथ मैथुनभाव' का त्याग कर जो ब्रह्मनिष्ठ है, वे दयापूर्ण पंचमहाव्रतधारी यदि मेरे गुरुदेव हो तो हे राक्षसी ! तुम्हारे जीवन में से हिंसक भाव समाप्त हो जाय / / (4) जन्म से ही मेरे हृदय में, मन में, तथा बुद्धि में भी अरिहंत पर मात्माओं की अहिंसा-संयम तथा तपोमयी आज्ञा वज्रलेपसी रही हो तो हे राक्षसो ! तुम्हारी दृष्ट बुद्धि का विलय हो जाओ, मानो / गरुडी मंत्र से जैसे सर्प कंप जाता है उसी प्रकार वह राक्षसी भी कंपायमान हो गई और दमयंती को खाने की इच्छा से मुक्त बनी, क्योंकि शियल संपन्न पतिव्रता स्त्री के वचन ही अमोघ शक्ति के धारक होते हैं / राक्षसी ने सोचा यह स्त्री सामान्य नहीं है, अपितु अन्यून प्रभाववती है अतः दमयंती को नमस्कार करके अन्तर्धान हो गई / उपद्रव मुक्त बनी हुई दमयंती ने अपना प्रयाण पुनः चालू किया और आगे बढ़ी। 68 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust