________________ भी नहीं है / बेशक ! मनुष्यावतार को प्राप्त करने पर जो अविवेकी है वे ही मांस भोजी है, अब मुझे मालूम नहीं कि, तुम देव हो या नराधम / फिर भी मेरे शरीर का पारणा करने से प्रथम कान लगाकर सुन लो / म (1) जन्मे हुए इन्सान की मृत्यु सर्वथा निश्चित है, उसे संसार का पुरुष विशेष भी टाल नहीं सकता है। जीवमात्र के हाथ में आयुष्य कर्म की हथकड़ी पड़ी है, वह जितनी मर्यादा कि होगी तब तक उस जीवको तेरे जैसे एक यहीं परंतु हजारों राक्षस, यक्ष आदि भी मार नहीं सकते। आयुष्कर्स मर्यादा ज्यादा से ज्यादा 33 सागरोपम की है, इतने लंबे आयुष्यवाले को छोटे आयुष्यवाले पिढी दरपिढी भी देख सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि, वह अमर है। इस संसार में युग युग में ब्रह्मा भी आते हैं और जाते हैं, इन्द्रपद पर रहा हुआ इन्द्र भी अमर नहीं है, बेशक ! आयुष्य कर्म उसका दीर्घकालीन होने से वह अमर सा अनुमनित होता है, फिर भी उसका अंत आने पर उसको वह स्थान छोड़ना सर्वथा अनिवार्य है / तो फिर मेरी बात क्या करनी ? क्योंकि मैं भी जन्मी हुई हूँ, तुम भी जन्मे हुए हो, अतः एक दिन में भी और तुम भी मृत्यु के मुख में जानेवाले हैं। काम (2) यह तथ्य सर्वथा निश्चित होने पर भी इन्सान को मृत्यु का भय इसलिए है कि, मायाग्रस्त बनकर हिंसा, झूठ, चोरी, दुराचार और परिग्रह के पापों को उपार्जित किये हुए होने से कृत्य कृत्य नहीं, है इसलिए तो कहा जाता है, वही मरने से डरता है, जो पापी है अधर्मी है राक्षस मेरे जीवन में दृश्य या अदृश्य एक भी पाप नहीं है अतः कृत्यकृत्य बनी हुई मुझे मरने का भय स्वप्न में भी नहीं है / (3) जन्म से ही मैंने अरिहंत परमात्माओं की आज्ञा के अनुसार व्रतों का पालन किया है, अतः पाप का एक भी द्वार मेरे जीवन में खुला हुआ नहीं होने से मैं कृत्यकृत्य अर्थात् किसी भी जीवात्मा से मेरा बेर 8 P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust