________________ * लेखकीय निवेदन * कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र के 8-9 पर्व के सम्पादन समय में उसके तीसरे सर्ग में नलदमयंती का जीवन चरित्र देखा, पढा और ज्यों-ज्यों हृदयंगम होता गया, तभी से उसका भाषानुवाद करने की इच्छा प्राप्त हुई / वही अनुवाद आगरा (य. पी.) से प्रकाशित श्वेतांबर जैन साप्ताहिक पत्र के प्रत्येक अंक में प्रकाशित होता रहा है / एतदथं उसं पत्र के मालिक, श्रीमान् जवाहरलालजी लोढा और उनके सुपुत्र श्री वीरेन्द्रकुमार की सहृदयता तथा उदारता का मैं ऋणी हूँ। साप्ताहिक पढ़नेवाले सभी को यह कथा खूब . पसन्द पड़ी थी / आज उसे पुस्तकारूढ करने का अवसर मिला जो दूसरी आवृत्ति में आपके सामने है / . ... __कथा का अन्तस्तल रोचक तथा औपदेशिक होते हुए भी नारीजाति के आभ्यन्तर जीवन का सर्वग्राह्य आलेखन अपने ढंग में निराला ही प्रतीत होता है / वस्तुतः नारी केवल ढींगली या भोग्य नहीं है, अपितु जगदंबा है, नारायणी है तथा राम, कृष्ण, महावीर स्वामी, हनुमान, सीता, राजीमति, चन्दनबाला तथा वस्तुपाल-तेजपाल भामाषा महात्मा गांधी आदि को जन्म देनेवाली रत्नकुक्षि है। जिस देश में, समाज में, कुटुंब में नारीजाति तिरस्कृत तथा अपमानित होती हैं तथा गंदी नजर से देखी जाती है, इतिहास साक्षी दे रहा है कि, उस कुटुंब समाज तथा देश ने हर हालत में भी उन्नति का शिखर प्राप्त किया नहीं है, करता नहीं है और करेगा भी नहीं, क्योंकि पुरुष जाति के दुर्गुणों का निर्यात तथा सद्गुणों का आयात का मौलिक कारण ही माता है / सतीत्व सम्पन्न दमयंती का जीवन ही अपने को साक्षी दे रहा है कि, नारी जीवन में विकसीत शक्तियां बिगड़े हुए देश की, समाज की तथा कुटुंव की सेवा करने में कितना सफल बनने पाया है। फलस्वरुप आज भी इन्सान मात्र सती शिरोमणी नारीओं का बहुमानपूर्वक सत्कार करने में गौरव का अनुभव तो करता ही है, साथ-साथ ऐसी कन्याएँ मेरे खानदान में जन्मे ऐसी प्रार्थना भी परमात्मा से करता रहता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust