________________ 1.7.2 ] हिन्दी अनुवाद 5. कविको स्वीकृति और काव्यारम्भ उन नाइल्ल और शीलभट्ट आदिके ऐसे वचन सुनकर नये कमलके समान मुखवाले पुष्पदन्त ने प्रसन्न होकर कहा-मैं जानता हूँ कि नन्न महागुणशाली हैं। उनके लिए धन तृणके समान है, प्रत्युत तृणसे भी अधिक तुच्छ है। वे शठताको त्याग कर धर्मसे बंधे हए हैं। तो अब में काव्य-रचना करता हूँ। पिशुनजन भले ही निन्दा करें किन्तु सज्जन तो प्रसन्न मुखसे प्रशंसा हो करेंगे। यह तो दुर्जन और सज्जनका स्वभाव ही है। अग्नि उष्ण और मेघ शीतल होता ही है। अपने कुलरूपी कमलके सूर्य, मेरु पर्वतके समान धीर तथा माने हुए शूरवीर, हे नन्न सुनो जिनेन्द्र ने आकाशको अनन्तानन्त कहा है। उसके मध्य में यह तीन प्रकारका भुवन स्थित है। पहला भुवन मल्लक अर्थात् शकोरेके समान कहा गया है, और दूसरे लोकको ऋषियोंने वज्रके समान कहा है। तीसरे लोकको वे मृदंगके समान कहते हैं। भला कहो अरहंत भगवान् कौनसी बातको छिपाकर रखते हैं। यह त्रैलोक्य न तो ब्रह्माके द्वारा निर्मित किया जाता है, न विष्णुके द्वारा धारण किया जाता है और न शिवके द्वारा नष्ट किया जाता है। त्रैलोक्यके बीच अनेक द्वीप समुद्रोंसे शोभित यह मध्यम लोक अपने आप स्थित है // 5 // ..6. जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र व मगधदेशका वर्णन उस मध्यम लोकमें सबसे विशाल जम्बूद्वीप है, जहाँ सूर्य और चन्द्रका प्रकाश होता है। उस जम्बूद्वीपके मध्य में सुदर्शन नामक मेरु है, जहां कांसको खोदते हुए सूकर विचरण करते हैं। उस मेरुकी दाहिनी दिशामें भरतक्षेत्र स्थित है। जो खेड़े, ग्राम और उत्तम नगरोंसे विचित्र दिखाई देता है / इसी भरतक्षेत्रमें सुप्रसिद्ध मगध देश है, जहाँ कमलोंके परागसे रंजित हाथी दिखाई देते हैं / जहाँ कल्पवृक्षोंके सदृश नन्दन वन हैं। जहाँ पके हुए धानके खेत फैले हुए हैं। जहां सैकड़ों बगुलों तथा हंसोंकी पंक्तियों द्वारा सम्मानित क्षीरके समान पानीसे भरे सरोवर हैं। जहाँको गायें कामधेनुके समान धड़ों दूध देनेवाली और खूब घी वाली हैं। जहाँके कृषिक्षेत्र समस्त जीवोंका पोषण करनेवाले सघन दानोंसे युक्त बालों सहित हैं। जहां पथिक दाखके मण्डपमें अपना दुःख दूर करके स्थल पद्मोंके ऊपर सुखसे सोते हैं। जहाँ किसानोंकी स्त्रियोंके कलरवसे मोहित होकर पथिक मार्ग में ही हरिणोंके सदृश ठहर जाते हैं। जहाँ पौड़े एवं इक्षुके खेत चारों दिशाओंमें - - हिलते-डुलते तथा महिषोंके सींगोंसे आहत होकर रस गिराते दिखाई देते हैं। और जहाँ मरकत मणिके समान मनोहर हरे पंखोंसे युक्त शुक आमोंके गुच्छोंपर एकत्र दिखाई देते हैं / ऐसे उस मगध देशमें राजगृह नामका उत्तम नगर है। जो स्वर्ण और रत्नोंकी राशिसे गढ़ा गया है। मानो बलवान् देवेन्द्रों द्वारा धारण किये जानेपर भी देवनगर आकाशसे आ गिरा हो // 6 // . 7. राजगृह वर्णन वह नगर मानो कमल-सरोवररूपी नेत्रोंसे देखता था, पवन द्वारा हिलाये हुए वनोंके रूपमें नाच रहा था, तथा ललित लतागृहोंके द्वारा मानो लका-छिपी खेलता था। अनेक जिन मन्दिरों द्वारा P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust