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________________ 1. 4. 12 ] हिन्दी अनुवाद देवीके निकेत हैं। हमारे लिए पुण्य कर्मोके उपार्जनमें हेतु रूप हैं। भव्य जीवरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेवाले सूर्य हैं / आप अपने मनसे धनको तृणके समान तुच्छ समझते हैं, गुणवानोंकी भक्ति करते हैं और विनयसे आपके समीप कोई भी पहुंच सकता है। अतएव, हे उपाध्याय, आप परमधर्मका उपदेश दीजिए। __इस प्रकार दिन-प्रतिदिन भावसहित सेवा किये जानेपर जिसके मनरूपी कमलमें स्थिरता उत्पन्न करा दी गयी है उस धवल-यशस्वी काव्य-धुरन्धर कवि पुष्पदन्तसे उन दोनों शिष्यों ने प्रार्थना की // 2 // 3. वल्लभरायके मन्त्री भरतके पुत्र नन्नको प्रार्थना आप श्री पंचमी व्रतके फलको प्रकट करनेवाले नागकुमार वीरके गम्भीर चरित्रका व्याख्यान कीजिए जिसे हम सुनें / फिर वल्लभरायके महामन्त्री, कलिकालके विलास रूप पापोंका विनाश करनेवाले, कौण्डिन्य गोत्ररूपी 'आकाशके चन्द्रमा, दारिद्रयरूपी कन्दके अंकुरको समूल नष्ट करनेवाले, उत्तम काव्यरूपी रत्नोंके रत्नाकर, पद्मिनो लक्ष्मीके मानसरोवर, प्रसरणशील कीर्तिरूपी वधूके कुलगृह, विच्छिन्न ( अथवा विस्तीर्ण ) सरस्वतीके बान्धव, अनेक दीनजनोंको धनसे पूरित करनेवाले, अपनो बुद्धिके प्रसारसे शत्रु-बलको जीतनेवाले, अपने स्वामी नरेशको चिन्तित फल प्राप्त करानेवाले, पूर्ण चन्द्र-बिम्बसदृश उज्ज्वल-मुख, कुन्दव्वा माता और भरतके द्विजपुत्र नन्नने भी कहा हे महानुभाव, व्यसनोंके तापको दूर करनेवाले पुष्पदन्त, आप आलस्य छोड़िए और मनोहर काव्यको रचना कीजिए। आपको जैनधर्मके कार्य में मन्द नहीं होना चाहिए। आप श्रुतपंचमी उपवासके निर्मल फलोंको कहिए, हम सुननेको तैयार हैं। जब नन्नने इस प्रकार कहा तभी नाइल्ल और शोलेया भी कविसे बोल उठे- / नन्न इतने सामंजस्य रखनेवाले विमल-यशस्वी हैं कि उनके नामका यह विग्रह किया जा सकता है कि गृहलक्ष्मीको सम्हालने में उनके सदृश न + अन्यः अर्थात् अन्य कोई नहीं है। अतः उनके महत्त्वपूर्ण नामका गायन सुमेरु पर्वतपर देवियों द्वारा भी किया जाता है / / 3 // 4. नन्न की प्रशंसा उस नन्नके नामको अपने काव्य में चढ़ाइए जिससे आसन्न भव्य नन्नको सन्तोष होवे / बुद्धिमें नन्न स्वयं बृहस्पति ही हैं, इसमें सन्देह नहीं। अन्तर केवल इतना है कि नन्नको उनके वैरी नहीं जीत सकते। प्रभु-भक्तिमें वे हनुमान्के समान देखे जाते हैं; किन्तु नन्न बानर नहीं हैं, एक विशिष्ट नर हैं / चारित्र्य-शुद्धि में वे गांगेय अर्थात् भीष्मके समान सन्तोष उत्पन्न करनेवाले हैं, तथापि नन्न कभी अपने वैरियोंको पीठ नहीं दिखलाते। धर्ममें वे युधिष्ठिरके समान धर्मानुरक्त हैं; किन्तु नन्न प्रवासके दुःखसे बचे हुए हैं / त्यागमें वे कर्णके समान लोकमें दानशील हैं; परन्तु नन्न अपने बन्धुओंका घात नहीं करते। कान्तिमें वे पूर्ण चन्द्रके समान मनोहर हैं; किन्तु नन्नमें कोई कलंक नहीं दिखलाई देता / गौरवमें वे पृथ्वीके समान विशुद्ध चरित्र हैं, किन्तु नन्नको किडी ( बगह ) ने अपने डाढ़ोंसे नहीं उठाया। योगी उन्हें स्थिरतामें मेरु कहते हैं; किन्तु नन्न पुरुष हैं, पत्थर नहीं। लोग उन्हें आदर सहित सागरके समान गम्भीर कहते हैं; किन्तु नन्नका देवगण भी मन्थन नहीं कर सके। जिसकी श्रेष्ठ कवियों ने इस प्रकार प्रशंसा की है, उसे भाव सहित अपने मनमें भाकर उस नन्नके नामको आप अपने सुललित काव्यमें चढ़ाइए // 4 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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