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________________ नागकुमारचरित हिन्दी अनुवाद - सन्धि सन्धि 1 1 / 1. सरस्वती-वन्दना कलिकालके दोषोंसे मुक्त और सद्गुणोंसे परिपूर्ण अरहंतादि पंच परमेष्ठीको भाव सहित प्रणाम करके मैं कवि पुष्पदन्त श्रुतपंचमी व्रतके फलको प्रकट करनेवाले नागकुमारके सुन्दर चरित्रका वर्णन करता हूँ। ___ वह सरस्वती देवी मुझपर प्रसन्न होवे जो शब्द और अर्थ इन दोनों प्रकारके अलंकारोंसे शोभायमान है, जैसे स्त्री अपने शीलादि आभ्यन्तर गुणों तथा वस्त्राभूषणादि बाह्य अलंकारोंसे सुन्दर दिखाई देती है। जो लीलायुक्त कोमल सुबन्त, तिङन्तादि पदोंकी दात्री है, जैसे स्त्री विलासपूर्ण कोमल पदोंसे चलती है। जो महाकाव्य रूपो गृहमें संचरण करती है। जो विविध हाव-भाव और विभ्रमोंको धारण करती है। जो सूप्रशस्त अर्थसे आनन्द उत्पन्न करती है, जैसे सद्गृहिणी अच्छा धन संचय कर पतिको आश्वस्त करती है। जो समस्त ज्ञान-विज्ञानको परिपुष्ट करती है, जैसे सुमहिला समस्त गृहविज्ञानका सदैव ध्यान रखती है। जो समस्त देश-भाषाओंका व्याख्यान करती है। जो संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओंके विशेष लक्षणोंको प्रकट करती है, जिसे भाग्यवती स्त्रीके कलशादि सामुद्रिक चिह्न दिखाई देते हैं। जो विशाल मात्रादि छन्दों द्वारा विचरण करती है, जैसे कुलवधू अपने सास-ससुर आदि ज्येष्ठ पुरुषोंके अभिप्रायानुसार आचरण करतो है। जो काव्य शैलीके श्लेष प्रसादादि दश प्राणभूत गुणोंको ग्रहण करती है, जैसे स्त्री पंचेन्द्रियादि दश प्राणों को धारण करती है। जो शृंगारादि नव रसोंसे संसिक्त होती है, जैसे गृहिणी नवीन घृत, तैलादि रसोंसे भरपूर रहती है। जो तत्पुरुष, कर्मधारय और बहुव्रीहि नामक तीन समासों अथवा समास, कारक और तद्धित रूप तीन विग्रहोंसे शोभायमान होती है, जैसे स्त्री ऊर्ध्व, मध्य एवं अधो शरीररूपी त्रिभंगीसे सौन्दर्यको प्राप्त होती है। जो आचारांग आदि द्वादश अंगों एवं चौदह पूर्वोसे युक्त है, जैसे स्त्री अपने हाथ, पैर आदि बारह अंगों तथा पितृपक्ष के सात व मातृपक्षके सात इत चौदह पूर्वजोंसे कुल-स्त्री होती है / जो जिनेन्द्रके मुखसे निकली उपदेशात्मक स्याद्वाद रूपी सप्तभंगीसे सम्पन्न है। जैसे सद् स्त्री जिनेन्द्र द्वारा उक्त शंखादि विविध लक्षणोंसे युक्त होकर शोभायमान होती है / तथा जिसका नाम व्याकरण वृत्तिसे विख्यात है। . श्रीकृष्णराजके हस्तमें स्थित खंड्गरूपी सरिताके कारण जो दुर्गम है तथा जो अपने धवल गृहशिखरों द्वारा मेघके समूहको भेदती है ऐसी सुविशाल मान्यखेट नामक नगरी है // 1 // . 2. कवि परिचय - मुग्धादेवी और केशव भट्टके पुत्र, कश्यप ऋषि गोत्रीय, विशाल-चित्त, महान् गुणशाली अभिमान मेरु ( कवि पुष्पदन्त ) जब नन्नके भवनमें निवास कर रहे थे तब महोदधिके शिष्य, दुष्कृत और मोहके त्यागी गुणधर्म तथा शोभन ने भूमितलपर सिर रखकर प्रणाम करके विनय पूर्वक प्रार्थना की कि हे मुग्धादेवी और केशव भट्टके पुत्र, स्नेहशील पुष्पदन्त, आप सरस्वतो P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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