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________________ कवि-प्रशस्ति इस प्रकार गौतम गणधर देव द्वारा कथित व आचार्य परम्परासे उपदिष्ट नागकुमार चरितको मैंने प्रकाशित किया और श्रीपंचमी व्रतके फलको कहा। जो उसे पढ़े व पढ़ावे वह सुखी हो, तथा वह भी सुखी हो जो इसे लिखे व लिखवाये / वह भी सुखी हो जो इसका विस्तारसे व्याख्यान देवे, और सुखी हो वह जो इसकी भावना भावे / सन्मति अर्थात् महावीर तीर्थंकरका शासन और सम्यक्-ज्ञान जयवन्त होवे। तथा प्रजा और राजा भी सुखसे आनन्दित होवें। जब-जब इच्छा की जाये तब-तब वर्षा होवे / नन्न भी सुखी और दीर्घायु होवे। नन्नको अति पवित्र व निर्मल दर्शन, ज्ञान और चारित्र्यकी प्राप्ति होवे। नन्नको रोग और शोकका क्षय करनेवाले पंचकल्याणक (गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान एवं मोक्ष ) होवें / नन्नका यश त्रैलोक्यमें व्याप्त होवे / तथा नन्नके घर धन-सम्पत्तिको धारा बरसे। मेरे मुग्धादेवी और केशव नामक माता-पिता सुखके धाम होवें, जो पहले शिवभक्त थे, काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे किन्तु गुरुके वचनामृतसे उनके कर्णपूरित होने पर वे पापोंका विनाश करनेवाले जैन संन्यास विधिसे मरणको प्राप्त हुए। जिन धर्मको भावनासे पूर्ण दंगइयाको रत्नत्रयकी विशुद्धि प्राप्त होवे और मुझे समाधि और बोधि प्राप्त हो : मुझे निर्मल केवलज्ञान भी उत्पन्न होवे। पुष्पदन्त जिनेन्द्रकी प्रियपूज्य श्रुत देवी नन्न और मुझपर दया करें, समस्त दुर्वचनको क्षमा करें तथा मुखमें निवास करें // 1 // जो नन्न शुभतुंग भवनके कामकाजके भारको वहन करनेमें वीर वृषभ थे, कौण्डिन्य गोत्र रूपी आकाशके चन्द्र थे, प्रकृतिसे सौम्य थे, जो कुन्दव्वा माताके गर्भसे उत्पन्न थे व श्री भरत भट्टके पुत्र थे, जिन्होंने अपने यशके प्रसारसे भवनोदरको भर दिया था, जो जिनेन्द्रके चरणकमलोंके भ्रमर थे, जो निरन्तर उत्तम जिनमन्दिर बनवाया करते थे तथा जिन भवनमें पूजा करने में लगे रहते थे। जो जैन शासन व आगमके उद्धारक थे। जो मुनियोंको दान दिया करते थे, जो कलिकालके दोषों और कलंकोंसे रहित थे, जिन्होंने बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकारके शत्रुवर्गको जीत लिया था, जो करुणारूपी अंकुरको बढ़ाने में नये मेघके समान सिंचनकारी थे, दोन जनोंके शरण थे, जो राज्यलक्ष्मीकी क्रीडाके सरोवर थे। ___ जो वागेश्वरीके निवास थे, समस्त विद्वानोंके विद्या द्वारा विनोदमें तत्पर रहते थे और शुद्ध हृदय थे, उन्हीं नन्नकी प्रार्थनासे प्रहसित-मुखवाले काव्य-पिशाच (नामसे प्रसिद्ध ) श्री पुष्पदन्त द्वारा इस नागकुमार चरितकी रचना की गयी। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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