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________________ -9, 24. 6 ] हिन्दी अनुवाद 171 सुशोभित ब्राह्मणोंके शरीर हों। कलश सिरपर धारण किये जानेसे मानो वे शिष्योंसे घिरे हुए गरु हों। कामिनियों द्वारा धारण किये जानेसे वे ऐसे लगे जैसे उनके प्रेमी हों। उनपर पल्लव ढांके गये थे जिससे वे कल्पवृक्षों सदृश दिखाई दिये। वे जलसे भरे हुए थे अतएव जड़से संसर्ग रखनेवाले मूखों सदश जान पड़े। कलशोंके कण्ठ सुन्दर बने थे जिससे वे मधुर कण्ठी गायकों जैसे जान पड़े। वे अच्छे मठारे गये थे जिससे वे शठ किरात पुत्रों सदृश दिखाई दिये। वे कलश उज्ज्वल थे और इस कारण ऐसे लगे मानो नागकुमारके भास्वान् यशपुंज ही हों। राज्यके भारको वहन करने में समर्थ कुलश्रेष्ठ व यशोधवल नागकुमारका मंगलगीतोंसे सम्मान किया गया। उन्हें उज्ज्वल आभूषणोंसे अलंकृत किया गया तथा साफ-सुथरे वस्त्र पहनाये गये // 22 // 23. नागकुमारका राज्यारोहण पिता द्वारा नागकुमारके भालपर जिनके विशाल वक्षस्थलमें राज्यलक्ष्मी ( पहलेसे ही) विराजमान थी; राज्यलक्ष्मीके स्नेह बन्धके समान राजमुकुट बाँधा गया मानो उनके पूर्व जन्मका पुण्य सम्बन्ध प्रकट किया गया। कुमार सिंहासनपर बैठे, मानो देवों द्वारा कन्दराओंका सेवन किये गये मन्दर पर्वतपर जिनेन्द्र विराजमान किये गये हों। उनके दोनों पावों में सुवर्णमय दण्डोंसे युक्त चमर डोल रहे थे मानो हंस पक्षी उड़ रहे हों। श्रेष्ठ मनुष्योंके हाथोंसे उनकी जो व्यजन क्रिया की जा रही थी वह मानो उनकी कीर्तिके खण्ड चारों ओर फैल रहे थे। उसपर जो सुन्दर नये छत्र धारण किये गये वे मानो राज्यलक्ष्मीरूपी लताके पुष्प थे। व्याघ्र, मयूर, सिंह तथा गरुड़के चिह्नोंसे युक्त एवं चन्द्र और सूर्यसे अंकित ध्वजाएँ उठायी गयीं। राजाको सवारोके योग्य दिव्यांग हाथी और घोड़ोंके द्वारा कुमारका राज्याभिषेक किया गया। होम किये गये व धनहीनोंको उनकी इच्छानुसार दान दिये गये। राजाका आदेश पाकर व्याल जहाँ-जहाँ वे रखी गयी थों वहाँ-वहां जाकर विद्याओं, भार्याओं, दिव्य शय्याओं, धन के खजाने व अन्य सभी नाना रत्नोंको घर ले आया। इस प्रकार स्वजनों और परिजनोंसे परिवारित होकर जयन्धरका पुत्र नागकुमार अपने पुण्यसे स्फुरायमान राज्यश्रीका उपभोग करता हुआ कनकपुरमें रहने लगा // 23 // 24. वैराग्यकी लहर नागकुमारका राज्याभिषेक देखकर श्रीधर विरक्त होकर पहले ही प्रवजित हो गया। जयन्धर राजा भी पृथ्वी देवीसहित संयमपूर्वक दिगम्बर मुनि हो गया। अपने खड्गसे शत्रुसमूहको विनष्ट कर, बन्धुओंके हृदय-मनोरथोंको पूरा कर, ज्ञानसे विद्वत् समूहको सन्तुष्ट कर, सौभाग्यसे रमणियोंके प्रेमका पोषण कर, रूपसे कामदेव होकर, तेजसे चन्द्र और सूर्यको जीतकर, वैभव द्वारा इन्द्रके भी शूल उत्पन्न कर, बुद्धि द्वारा देवगुरु बृहस्पतिकी बुद्धिको P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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