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________________ -9. 22.7] हिन्दी अनुवाद प्रवृत्त होवे। इस प्रकार विधिवत् प्रोषधोपवास करनेसे वह फलदायी होता है। श्रावकको इस प्रकार विचारपूर्वक अपने गृहस्थाश्रममें रहना चाहिए / ___अब मैं और एक विशेष बात कहता हूँ, उसे सुनो। अपने द्वारा किये हुए व्रतोपवासका सदैव उद्यापन भी करना चाहिए। आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन इन तीन मासोंमें से किसी भी एल मासको शुक्लपक्षको पंचमीका पूर्वोक्त उपवास समान रूपसे 5 वर्ष तक बुद्धिमान् मन, वचन, कायको शुद्धिचर्या सहित करते हैं फिर श्रेष्ठ पाँच प्रतिमाओं ( जिनमूर्तियों ) का चयन करके धर्म-विषयक पुस्तकों तथा उनको बाँधकर रखने योग्य वस्त्रोंसहित उन्हें भक्तिपूर्वक मुनियोंको समर्पित किया जाती है। उसी प्रकार आडम्बररहित किन्तु शुभ कान्तियुक्त अच्छे पाँच परिधान वस्त्र (ब्रह्मचारी व क्षुल्लक आदि त्यागियोंको ) देना चाहिए। उसी प्रकार विनीत भावसे नमन करते हुए भव्यजनों द्वारा पूज्य चतुर्विध संघको उनकी असाध्य व्याधियोंको विनष्ट करने के लिए शुद्ध औषधियोंका दान किया जाता है / इसी प्रकार नेत्र-सुभग महापटके वितान, नाना प्रकारके धार्मिक चित्र, अच्छो टंकार करनेवाले चमचमाते हए घण्टा, नाटकों और सट्टकोंके ( वस्त्र, मुकुट आदि ) उपकरण तारों और चन्द्रसे अंकित विशाल चंदोवा, अपने संघको रसीला और मनोज्ञ भोज, इन सवका दान भव्य श्रावक करे। तथा अपने मनमें इस दानका गर्व न करे। इस प्रकार विधिवत् दिया. गया दान तुरत फलदायी होता है, जिस प्रकार कि अच्छा बीज अच्छे खेतमें प्रयत्न पूर्वक बोया , जानेपर ( यथासमय ) अच्छी फसल लाता है / इस प्रकार जब वहाँ मुनिराज प्रोषध और उसके माहात्म्य, सम्यक्त्व, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, राग तथा धर्मार्थ तथा जैनधर्म सम्बन्धी तत्त्वोंकी कथा ( चर्चा ) कह रहे थे // 21 // 22. नागकुमारका पिताके घर पुनरागमन तभी उसी अवसरपर पितातुल्य सिंहसमान स्कन्धशाली नयन्धर मन्त्री वहां आ पहुंचा। उस मन्त्रिश्रेष्ठने नागकुमारको बुलाया जैसे इन्द्र अपने मन्त्री बृहस्पति द्वारा बुलाया जाये। उन्होंने कनकपुर जाकर राजा जयन्धरके दर्शन किये। पुत्रने सिरपर हाथ जोड़कर पिताको प्रणाम किया। पिताने आशीर्वाद देकर अपने पुत्रकी ओर पुनः-पुनः देखा और उसके मस्तकका चुम्बनकर उसे अपनी गोदमें बैठा लिया। फिर पिताने एक-एक कर यादववंशी, सोमवंशी व कुरुवंशी प्रधान राजाओंको बुलवाया और धवल मंगल गीतों, सुवर्णके तुर्योके वाद्यसहित सहस्रों मंगल कलशोंसे नागकुमारका अभिषेक कराया। उन कलशोंसे ऐसी धारा बरसी जैसे मानो वे नवमेघ ही हों। उनपर मंगलसूत्र लिपटे होनेसे वे ऐसे दिखाई देते थे जैसे वे यज्ञोपवीतोंसे P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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