________________ -9. 20.6] हिन्दी अनुवाद 19. देव द्वारा सम्बोधन __ऐसा कहकर उसने हर्षपूर्वक सुन्दर जिनधर्मका प्रवचन किया। वह बोला-हे तात, आप शोक क्यों करते हैं। आप मोहके वश होकर भूलमें पड़े हैं। इस संसारमें तो प्रत्येक जीव अकेला .. ही है। इस अशुभकारी दुःखरूपी जलसे भरे होनेके कारण भयंकर भवसागरमें मत डूबिए / आप धर्म कीजिए और धर्मका प्रधान अंग है जीव दया / यही धर्म भव-भवमें जरा-मरणादि दुःखोंका निवारण करनेवाला है। मैं क्या कहूँ। आप तो इस विशाल धर्मका फल प्रत्यक्ष देख रहे प्रकार धर्मका स्वरूप कहकर उसने माता-पिताके चित्तका सम्बोधन किया और समस्त बान्धववर्गके मोहको भी दूर किया। फिर वह देव पलक मारते अपने उसी देव स्थानको चला गया जहाँ सभी प्रमुख सुख प्राप्त होते हैं। इधर उसके माता-पिता व बन्धुवर्गने तुरन्त उसके शरीरका संस्कार किया और फिर स्नान कर जलांजलि दी। तुम्हारी यह प्रिय पत्नी समस्त व्रतोंका झीण हो गयी कि उसकी रीढ़ ऊपर उठ आयी। तथा उसकी हड्डियां दिखाई देने लगीं। अन्तमें अनुरागसहित उसने संन्यास ग्रहण किया और मरकर तुम्हारे पास जा पहुँची। वहां दोनोंने " मिलकर सैकड़ों सुख भोगे और फिर स्वर्गसे च्युत होकर इसी भरतलोकमें आये / तू जयन्धर राजाका गुणरूपी मणियोंकी खान व नेत्रोंको आनन्ददायी पुत्र हुआ और यह सुख-भाजन मृगलोचना लक्ष्मीमति तेरी पूर्व भवके स्नेहसे युक्त प्रिय पत्नी हुई। अपने पूर्व भवका यह सुन्दर वृत्तान्त सुनकर नागकुमार अपने समस्त शरीरमें निरन्तर पुलकित हो उठा। फिर उसने मुनिनाथको नमन करते हुए पूछा- कि उस श्री पंचमी उपवासकी विधि क्या है ? कुमारके वचन सुनकर मुनि बहुत प्रसन्न हुए तथा पापरूपी अन्धकारके समूहको विनाश sa 20. श्रीपंचमी व्रतोपवास-विधि उन परधर्मोसे दुर्गाह मुनिनाथने अपनी दिव्य वाणी द्वारा नागकुमारसे कहा- सच्चे जिनधर्ममें जो उपवास तोन प्रकारके कहे गये हैं वे हैं अधम, मध्यम और उत्कृष्ट / व्रतोंकी शोभासे युक्त हे नागकुमार, चातुर्थ नामक प्रोषधोपवासकी विधि सन्तोष भवसे मानिए। आषाढ़, कार्तिक - और फाल्गुन मासके शक्लपक्षकी चतुर्थी तिथिको चित्तमें सन्तोष धारण करते हए एकासन व्रत करे और घरका सब काम-काज छोड़ दे। पूर्णतः विशुद्ध होकर श्वेतवस्त्र धारणकर शोभा, अलंकार व काम वासनाका परित्याग कर मन, वचन और काय इन तीनों प्रकारके विशुद्ध P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust