________________ -9.11.6] हिन्दी अनुवाद 153 यह सब क्या प्रलाप किया गया है ? पशुओंके प्रति इस प्रकार पापसे लोग अति पापग्रस्त होते हैं / और महाभट भी अपने दुष्कर्मोंका फल भोगते हैं / मृगोंका मांस भक्षणकर तथा इसका निषेध करनेवाले जिनेन्द्रको दूषित बतलाकर, हे भद्र, यह कृष्ण-मृगचर्म क्यों धारण किया गया है ? आपने सौदामनी यज्ञमें मद्यका सेवन किया तथा गोस्वामी (गोसवि-इन्द्रियविजयी) होकर भी जननी . गमनको बात सोची। यज्ञ में पितृ विधिका बहाना लेकर तीक्ष्ण कटारसे काटकर विशेष प्रकारके मांसरसका भक्षण करते हुए समस्त जीवोंका भक्षण कर डाला अर्थात् सबको सच्चे धर्मसे भ्रष्ट सकता है ? दर्भ (कुश ), जल, मिट्टी तथा हड्डोके पात्रोंमें रखे आहारसे बेचारे ज्ञानहीन मनुष्य शुद्ध हो सकते हैं जो घोर हिंसात्मक आचरणसे मलिन हैं ? / / 9 / / 10. कुछ धार्मिक मान्यताओंकी आलोचना कामभोगको भी इच्छा करें और स्वर्ग भी जायें ? दूसरे जीवोंका घात करें और धर्मपालन की भी अभिलाषा रखें ? हाय-हाय, वेदवादीके वचन भी कैसे हैं ? क्या उसके प्रयाससे फलमें भी फूल लग सकते हैं ? तत्त्व एक ही ( ब्रह्म) है और वही नित्य है। यह कैसे कहा जा सकता है ? दूसरा दौड़ता है। एक मरता है और दूसरे अनेक जीवित रहते हैं। जो नित्य है वह बालकपन, नवयौवन तथा वृद्धत्व कैसे प्राप्त करेगा? जो वस्तु नित्य है उसका स-स्थावर तथा नाना प्रकारके पुद्गल रूप भेदोंमें परिणमन नहीं हो सकता। इस लोकको पुरुषका निवास रूप भवन कहा गया है, किन्तु उस पुरुषका दर्शन तो कहीं प्राप्त नहीं हुआ? इसीको मीमांसकोंने शून्य कहा है। उन्होंने जीव तथा पुण्य और पापका भी कोई उपदेश नहीं दिया। सांख्यदर्शनके अनुसार पुरुष क्रियारहित निर्मल और शुद्ध है तब फिर वह प्रकृति द्वारा बन्धनमें कैसे पड़ जाता है ? क्रियाके बिना मन-वचन और कायका क्या स्वरूप होगा? तथा बिना कुछ कर्म किये अनेक जन्मोंका ग्रहण भी कैसे होगा? बिना क्रियाके जीव पापसे कैसे बँधेगा? और कैसे उससे मुक्त होगा? यह सब विरोधी प्रलाप किस कामका? / पांच भूत, पाँच गुण, पांच इन्द्रियाँ तथा पांच तन्मात्राएं एवं मन, अहंकार और बुद्धि इनका प्रसार करनेके लिए पुरुष प्रकृतिसे कैसे संयोग कर बैठा ? // 10 // 11. कुछ भौतिक दर्शनों पर विचार . जल और अग्नि अपने-अपने स्वभावसे परस्पर विरोधी हैं फिर वे एक स्वरूप होकर कैसे रह सकते हैं ? पवन चंचल है और पृथ्वी अपनी स्थिरता लिये हुए स्थित है, तब फिर बहस्पतिके पुत्र अर्थात् चार्वाक मत के स्थापकने इनमें एक भावात्मकताका कैसे प्ररूपण किया? पंचभूतोंमें मिलावट कहाँ पायी जाती है ? जहां एक स्थिर हो वहां दूसरा क्रियाशील देखा जाता है। यदि जीवका जीवत्व कृत्रिम है और वह चारभूतोंके संयोगसे उत्पन्न हुआ है तो मेरा कहना है कि भोगोंका उपभोग करनेवाले त्रैलोक्यके जीवोंका एक सा स्वभाव क्यों नहीं है ? शरीर एक सा क्यों नहीं है ? और वही मनसे अधिक प्रभावशाली क्यों नहीं है ? अतः वह सब पण्डितोंका 20 P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust