SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्धि 9 1. नागकुमारका दन्तीपुर गमन व राजकन्यासे विवाह युद्धमें पवनवेगको मारकर तथा रस और महारसको राज्य देकर वह शत्रुरूपी हाथियोंका सिंह जयंधर-पुत्र नागकुमार दक्षिण मथुराको छोड़कर दन्तीपुर गया। पंडित श्रेष्ठ, श्वेतछत्रधारी, परमेश्वर पाण्ड्य नरेशसे पूछकर प्रफुल्लित पुष्पोंके मानस सरोवर, इक्षुधनुषधारी, प्रत्यंचापर बाण चढ़ाये हुए नये मेघ सदृश गम्भीर ध्वनिकारक स्मर (कामदेव ) नागकुमार दक्षिण मथुरासे चल पड़े / उनका सैन्य भी चल पड़ा जिससे शेषनाग थर्रा उठा। तेज घोड़ोंके खुरोंसे उड़ायो हुई धूल द्वारा सूर्य इस प्रकार ढक गया कि नेत्रोंसे न रात्रि जानी जाती थी और न दिन। उस समय आन्ध्र देशमें नये विकसित हुए उपवनों, स्वच्छ गम्भीर सरोवरों तथा शीतल वनों से युक्त नगर दन्तीपुरमें राजधर्मसे सुशोभित तथा अपने देशकी समस्त दिशाओंका पालन करनेवाला चन्द्रगुप्त नामक राजा था। उसे चन्द्रमती नामक पटरानीसे उयोतित सम्मुख आते हुए उनके भावी जामाता नागकुमारने देखा। राजाने भी कुमारको अपने भवनमें प्रविष्ट कराया। उनकी धन स्तनोंयुक्त यौवन सम्पन्न मुग्धा कन्याको देख लेनेपर, उस मदनमंजूषा नामक पुत्रीका नागकुमारसे विवाह कर दिया। उसका स्नेह पाकर तथा उसे सुखी देखकर उस विशालाक्षीको वहीं रखकर वह उस त्रिभुवनतिलक नामक नगरको गया जहाँके घर चातुर्वर्ण आश्रमकी व्यवस्थासे सुशोभित थे। ___ वहां कुमारने उस विजयंधर नामक माण्डलिकको कृपापूर्वक देखा जो अपने मण्डलको छुड़ाने के लिए धन लेकर विजया नामक महादेवी सहित उनसे मिला था // 1 // 2. नागकुमार-लक्ष्मीमती विवाह राजाने घर आये हुए जामाताको उनसे प्रेम करनेवाली अपनी लक्ष्मीमती नामक पत्री दे दी। वह कुमारको इतनी प्रिय हुई जैसे चन्द्रको रात्रि, नये भव्यको जिनेन्द्र भक्ति, सजनको सज्जनोंके गुण-समूहकी तृप्ति, भूमिपति ( नरेश ) को प्रभुत्व शक्ति, श्रेष्ठ कविराजको भाषा योजना, निर्ग्रन्थ मुनिको तन मन और वचनकी गुप्ति, अरहंत भगवान्के अभिषेकके प्रारम्भके लिए युति ( ग्रहयोग ), साम प्रधान मन्त्रको क्षमा, भिक्षा मांगनेवाले विप्रको संक्रान्ति, चमकते हुए विशेष PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy