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________________ -8. 16. 16 ] हिन्दी अनुवाद 143 भंग हो जानेपर संग्राम में अजय पवनवेग स्वयं भटोंसे आ भिड़ा। नागकुमारने उसके सम्मुख आकर उसके खड्ग प्रहारको अपनी खड्गसे रोककर अपने कौशलसे अवसर मिलाकर उस दुष्टके कंठपर ऐसा प्रहार किया कि उसका गला कट गया और वह मरणको प्राप्त हो गया। उसके गलेसे सीधी धारामें रुधिर उछला और उसका सिर पृथ्वीपर ऐसा आ पड़ा जैसे नाल सहित कमल। मनमें विद्वेष रखनेवाले वैरीको प्रज्वलित हुई क्रोधाग्नि नागकुमारके दुनिवार खड्गकी धाराके पानीसे उपशान्त हो गयी और शत्रुका पराभवरूपी पट रक्तरंजित हो गया // 15 / / 16. विजय, विवाह और राज्याभिषेक तब शत्रुके उस भट समहने कन्याओंके त्राणसे नागकुमारको जान लिया। उन्होंने विजयरूपी लक्ष्मोके मनोवांछित राजासे प्रार्थना को कि आप प्रत्यक्ष कामदेव हैं और हमारे स्वामी हैं। प्रभु नागकुमारने उस नरसमूहको अपना सेवक बनाना स्वीकार कर लिया जैसे रामने बानरोंके समूहको अपना अनुचर बनाया था। प्रियके दर्शनसे वे मुग्धा कुमारियां हर्षित हो उठीं मानो वे मलय पर्वतके उच्च शिखरपर जा बैठो हों। सुन्दर तिलक देकर व चन्दनसे सुरभित होकर वे ऐसी दिखलाई दीं मानो देवों द्वारा लायी गयी अप्सराएँ हों। अपने नेत्रोंसे हरिणियोंको पराजित करती हुई वे कन्याएं मानो कृष्ण द्वारा आकर्षित गोकुलको गोपिकाएं हों। अपना मनोरथ पूर्ण होनेसे मंगल गान करती हुई वे स्वजनोंके मन में राग बढ़ाने लगीं। नागकुमारने उन समस्त युवतियोंका परिणय कर लिया जैसे मानो हंसिनियां कल्पवृक्षपर आ बैठी हों। अपने कररूपी पल्लवोंसे युक्त उपवन वृक्षके समान वे कन्याएं गुणोंसे मुख-रागका प्रसार करती हुई नगरमें लायी गयों। जिन नागकुमारने पवनवेगको मारकर भस्मसात् कर दिया था उन्होंने रक्ष और महारक्षको वहाँका राजा बनाया। नागकुमारने लीलापूर्वक अपनो पुरोको राज्यश्रीका अवलोकन करनेवाली उन सतियोंको वहीं उसी नगरमें रखा, उन नये सुधीर नये सेवकों को भी रक्षार्थ वहीं नियक्त कर दिया तथा विशेष बुद्धिमान् मन्त्री भो स्थापित कर दिये / फिर वे पाँचों जन अपने तेजसे देवोंके विमानोंको भी तिरस्कृत करनेवाले अपने सुर विमानपर आरूढ़ होकर पाण्ड्य नरेशको राजधानोमें आकर अपने मणिभूषित निवास स्थानमें रहने लगे। उस नरश्रेष्ठ नागकुमारका हर, हार व हिम सदृश उज्ज्वल तथा कलिकी मलिनतासे रहित यश निर्बाध रूपसे उस प्रदेशमें फैलने लगा जहाँ उसके पुष्पों सदृश दाँतोंकी किरणें दिखाई पड़ रही थीं // 16 // इति महाकवि पुष्पदन्तविरचित नन्ननामांकित नागकुमारचरित नामक सुन्दर महाकाव्यमें बहुत-सी कन्याओंका कल्याण तथा वीर किंकरों की प्राप्ति नामक अष्टम परिच्छेद समाप्त / सन्धि // 8 // P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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