SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -8.11.13 ] हिन्दो अनुवाद 137 10. तोयावलिमें नागकुमारको जिनवन्दना वह महातेजस्वी व्याल, महाव्याल तथा अक्षय और अभय नागकुमारसहित पाँचों वीतरागके उस मंदिरको गये जो अपनी स्वर्ण कान्तिसे मध्याह्न-सूर्यको जीत रहा था। उन्होंने उन तीर्थकर भगवान्को वन्दना की जिनके शरीरका मंदर पर्वतपर अभिषेक किया गया था। नागकुमारके राग-द्वेषरूपी कषाय मन्द हो गये और वे स्तुति करने लगे-हे जिनेन्द्र, आपने इस दूषित शरीरकी निन्दा को है। आपका विषयोंमें कुछ भी अनुराग नहीं है। आपके लिए सोना और तृण तथा शत्रु और मित्र समान हैं / हे देव, आप भुवनरूपी कमलके लिए सूर्य हैं / आपने द्विजवरोंकी अशुभ तथा असुखकर एवं निस्सार ऋचाओंका निवारण किया है। कान्ताके वशीभूत तपस्वियों, तामस स्वभावी देवों द्वारा ब्रह्मकी प्राप्ति नहीं होती। आप जगद्गुरु हैं / जो जीव संसारमें कर्मों के वशीभूत होकर घूम रहे हैं, वे आपको सहज हो भूल जाते हैं / कामके वेगसे अत्यन्त उत्तेजित व अति शृंगार रससे मोहित जोव आपके वचनामृतसे सिक्त होकर उपशम प्राप्त करते हैं। इस प्रकार उन्होंने उन जिनभगवान्की वन्दना की, जो तपरूपी अग्निको ज्वालाओं द्वारा भास्वर होनेसे विष्णु, अपने तपःतेज द्वारा देवताओंको कम्पायमान करनेसे हर अर्थात् महादेव, अज्ञानान्धकारका नाश करनेवाले केवलज्ञानके धारक होनेसे सूर्य तथा अनन्तचतुष्टयरूपो दिव्यकमलमें विराजमान होनेसे कमलासन ब्रह्माके समान थे और जो गुणरूपी रत्नोंके निधान तथा संसाररूप काननको दग्ध करनेवाले अग्निके समान थे // 10 // 11. कन्याओंका साक्षात्कार सुमेरुके समान ऊँचे शिखरवाला जो मनोहर विमान समीप हो स्थिर था वहाँ जाकर नागकुमारके साथियोंने विद्या द्वारा दिया हुआ नाना रसोंसे युक्त भोजन किया। फिर मध्याह्न काल में वे जब उन कन्याओंके अन्यायको पुकारका कोलाहल होने लगा तब उसी जिनमन्दिरमें आये / नागकुमार उठा और ज्यों ही उसने सिर उठाकर आकाशकी ओर देखा त्यों ही उसे वह कन्याओंका समूह दिखाई दिया। उन्होंने मन्दारके पुष्पोंसे अपने केशोंको सजाया था। उनके सुगंधी श्वासोंके पवनसे आकर्षित होकर भौंरोंके पुंज मुखपर आ पड़ते थे। उनके स्थूल स्तन मंडलोंपर हार डोल रहे थे। तथा पैरोंमें पैजन मधुर झंकार कर रहे थे। उनके कटिभागमें मेखलाकी लड़ें लटक रही थीं। तथापि वे 'बचाइए', 'बचाइए' का प्रलाप कर रही थीं। राजा नागकुमारका आदेश पाकर शत्रु राजाओंको मदोन्मत्त हाथोके समान उग्र प्रहारों द्वारा त्रासित करनेवाले व्यालने उन कदलीके कन्दल समान सुकुमार सब बालिकाओंको बुलाया। वे आयीं। तब उन तरुण हरिणियोंके समान नेत्रोंवाली उन तरुणियोंसे प्रभुने पूछा-तुम नित्य हो यह अन्यायकी पुकार क्यों करती हो? इसपर उनमें सबसे ज्येष्ठ कुमारीने कहा-हे देव, मैं कहती हूँ, सुनिए। हे त्रिभुवनश्रेष्ठ स्वामी ! सुनिए, यहाँसे समीप ही मनोहर सुधासे उज्ज्वल गृहोंसे युक्त तथा अपने नन्दन वनके द्रुमोंमें देवोंको भी रमण करानेवाला भूमितिलक नामका नगर है // 11 // P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy