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________________ सन्धि 8 1. महाव्यालको कुसुमपुरमें वन-क्रीडा जयवर्माका पुत्र नेत्रोंको आनन्ददायी, गणिका सुन्दरीका हृदयहारी प्रवर महाव्याल रमणीय व धनसे परिपूर्ण कुसुमपुरके बाहर भ्रमण कर रहा था। वह नन्दन वनको व उसमें चलते हुए मनोहर हंसको देखता हुआ घूमने लगा। उसने मयूरको नाचते हुए, कोकिलको कूकते हुए तथा परेवाको कुड़कुड़की ध्वनि करते हुए देखा। उसने कहा-रे पक्षि, जो बातें तरुणी स्त्रियाँ किया करती हैं उन्हें तूने कहाँसे सीख लिया। रे शुक, दूर हट जा, आमको कोमल और ललित कलियोंको तू खण्डित मत कर। रे मूर्ख, तू अपनी तीक्ष्ण और चंचल चोंच क्यों चलाता है, और उस पुष्पवती बेलको पुनः-पुनः स्पर्श करता है ? भुजंग भले ही उसे बाहरसे लपेटकर रह जायें किन्तु केतकीके पुष्पके अन्तरंगको तो उसी भ्रमरने जाना है जो उसके अभ्यन्तर भागमें लीन हो, और जो उसके रसपान द्वारा बढ़कर दुगुना मदोन्मत्त हो रहा है। जो कुमुदिनीको परमानन्द देती हैं वे ही चन्द्रको किरणें शीतलं होकर भी पद्मिनीको जलाती हैं। तथा सूर्यको रश्मियाँ उष्ण होती हुई भी उसे सुख उत्पन्न करती हैं। ( ठीक ही हैं ) महिलाएं अपने प्रियके दोषोंको भी गुण मानती हैं। बिना सौभाग्यके अच्छा वर्ण क्या कर सकता है ? आमकी कलियोंपर भौंरा नहीं बैठता। जो चमेली पर अनुरक्त है वह प्रमत्त होकर उसीके चक्कर लगाता रहता है। पुष्पोंकी विभूति को प्रकट करने वालो जूही के कड़वे व रसभंग करने वाले अंगों को भ्रमर कभी नहीं चूमता // 1 // 2. महाव्यालका पाण्ड्यदेश गमन महाव्यालने मार्गसे आते हुए एक पथिक को देखा। उसे बुला कर कुमार ने पूछा-क्या तुमने पृथ्वीतल पर हुई कोई आश्चर्य जनक बात देखी है ? उस प्रवासोने कहा-जिसकी विजय पत्नी है मलय सुन्दरी जैसे नागकी नागिनी / उसकी कामरति नामक पत्री है वह ऐसी निरुपम है कि उसके सौन्दर्यका चिन्तन कर करके ब्रह्मा भी उसपर मरता है। किन्तु उसे पुरुष सुहाता ही PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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