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________________ 7. 15.12] हिन्दी अनुवाद 125 शत्र बलको जीत डाला- उसी अवसरपर नागकुमारके गजने सुकण्ठके गजको भी जीत लिया और उसे अपने दाँतोंसे भेदकर महोतलपर पटक दिया। अब दोनों भूगोचरी और खेचरोंके राजा समान रूपसे पदगामी हो गये। वे दोनों अपने रण रस द्वारा योद्धाजनोंका मनोरंजन करने लगे। वे दोनों ऐसे जाज्वल्यमान थे जैसे राम और रावण / दोनों आगे बढ़-बढ़कर प्रहार करते तथा खड्गोंको धाराओंकी परस्पर टक्करसे खनखनाहट उत्पन्न करते। उनके कटितलोंको किंकिणियाँ कनकना उठतों और देवांगनाएं जय-जयकार करने लगतीं। तभी मदन नागकुमारने अपने कृपाणसे सुकण्ठके गलेके दो टुकड़े कर दिये। उसने सुकण्ठके सिरको ऐसा काट डाला जैसे हंस कमलको खोंट लेता है // 14 // 15. कन्याओंकी बन्धन मुक्ति सुकण्ठकी मृत्यु हो जानेपर जब वह यमराजके घर पहुंच गया तब वे सातों कुमारियां बन्दीगृहसे छुड़ा दी गयीं। फिर उसके राज्यपर उसके पुत्र वज्रकण्ठको स्थापित करके तथा उसकी बहन रुक्मिणीका परिणय कर देवों द्वारा दी गयी विजयाशिवको ग्रहणकर जिस प्रकार कि कृष्णने शिशुपालका बध करके किया था, नागकुमार गजपुर जाकर अभिचन्द्रसे मिला। उसने भी उस वरचन्द्रको अपनी पुत्री चन्द्रा विवाह दी। अन्य उन सात कन्याओंको भी विवाहमें ग्रहण कर वह प्रभु बड़े उत्साहसे गजपुरमें रहा। धननिधि गरीबोंके उद्धारमें जायें, यौवन जाये तो तपश्चरणमें जावे, हृदय गुप्त होवे जिनेन्द्र के स्मरणमें, प्राण जाये मुनिके पण्डित मरणमें और जिये तो असहायकी सहायता करते हुए। जिस प्रकार कि नागकुमारने परोपकारी कार्य किया। हमारे सदृश जो क्षुद्र मनुष्य हैं वे तो माताके रक्तसे उत्पन्न कृमिमात्र हैं। ऐसे सुत जीवें भले ही किन्तु वे जीते हुए भी मृतक ही हैं। उनका कार्य केवल माताके स्तनोंकी सघनताका विनाश करना मात्र है। अपनी विवाहित युवती पत्नियोंके ( स्तनतटोंके भोग अर्थात् ) प्रेममें रत वह पुष्पों जैसे दांतोंकी कान्तिसे उज्ज्वल अनंग नागकुमार राज्य करता हुआ वहीं गजपुरमें रहने लगा // 15 // इति नन्ननामांकित महाकवि पुष्पदन्त विरचित नागकुमारनामक सुन्दर महाकाव्यमें अनेक कुमारियोंका लाम नामक सातवाँ परिच्छेद समाप्त / ॥सन्धि 7 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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