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________________ -7. 11. 17 ] हिन्दी अनुवाद 121 मैं तो अपने कुकवित्वकी निन्दा ही करता हूँ। फिर किसी अन्य दिन नागकुमार उस उर्जयन्त पर्वतपर गया जहांके विकट कूटोंपर देव अपनी देवांगनाओं सहित क्रीड़ा करते हैं। वहाँ उन्होंने जिनेन्द्र भगवान्के वस्त्रापहरण रूप व निर्ग्रन्थ मुनि व्रतकी स्तुति की, तीर्थंकरोंके स्फुरायमान चरण चिह्नोंको नमस्कार किया तथा ज्ञान-शिलापर अपने ज्ञानावरणरूपी वस्त्रको व्रत रूपी जलसे धोकर अपने ज्ञानको निर्मल किया। पर्वतके शिखरपर पहुंचकर उन्होंने उन स्थानोंकी वन्दना की, जहाँ मुनियोंने केवलज्ञान प्राप्त किया था और जहां उन्होंने मोक्ष पाया था। फिर उन्होंने यक्षिणी अम्बिकाके निवास व जलाशययुक्त उन स्थानोंको देखा जहां अम्बिकाने कठोर गुफा व दुर्गमें अपने शरीरको फेंक दिया था जो देवांगनाओंके जीवनको पवित्र बनानेके मार्ग बन गये हैं, जहां ब्राह्मणी रूपसे अम्बिकाकी स्थापना पायो जाती है, जहां फलरहित आम्रवृक्षमें भी ( अम्बिकाके प्रभावसे ) फलोंके गुच्छे लग गये थे, तथा जो शिशुओंके भयका अपहरण करनेके लिए एक विशेष उपाय है। तत्पश्चात् नागकुमार उस गिरिनगरको लौट आया और वहाँ उसने दीनों और अनाथोंको प्रचुर धनका दान दिया। ___ वहां वह अपने साथियों सहित तब तक रहा जब तक कि राज्यलक्ष्मीके हकारेके समान ..पत्रोंके आभरणसे भूषित कंठसहित एक लेख-वाहक नहीं आया // 10 // 11. गजपुर नरेशका लेख वह लेख कौरवकुलरूपी विशाल नभस्तलके चन्द्र गजपुरके नरेश उन अभिचन्द्रने भेजा था जो अपने अभिमानको छोड़ चुके थे, जो रत्नमाला गृहिणीके पति थे, चन्द्रमुख थे व चन्द्रा नामक कन्याके पिता थे तथा जो अपने भ्राताकी मृत्युके शोकसे व्याकुल थे। उस लेखका नागकूमारने अवलोकन किया और उसमें लिखित वृत्तान्तको वाचकने इस प्रकार पढ़कर सुनायाजहाँ उपवनोंके नये वृक्षोंके बीच देव क्रीड़ा करते हैं। उस वत्स जनपदके कौशाम्बी नगरमें मेरा ज्येष्ठ भ्राता शुभचन्द्र अपनी प्रिय पत्नी सुभद्रा सहित रहता था। उसके सुभद्रासे सात विनयशील * पुत्रियां उत्पन्न हुई जिनके नाम सुनिए-कमलप्रभा, सुखशालिनी कमला, विकसित कमल सदश मुखवाली कमलश्री, आनन्दप्रभा, सती नागश्री, श्वेतहंसगामिनी कनकोज्ज्वला और कनकमाला। इन सात कन्याओंको लेकर जो विधिवश गति हुई, हे कुमार, उसे सुनिए-वसन्तकाल आनेपर जब वे कन्याएँ हँसती हुई वसन्ततिलक नामक वनमें क्रीड़ा कर रही थीं तब उन मरकत मणि व सुवर्ण जैसे वर्णवाली कन्याओंको सोम नामक विद्याधरने देखा। उसने अलंघ नगरमें जाकर मतिमन्द सुकण्ठ विद्याधरसे कहा। उस वजोदरी देवीके प्राणेश, वज्रकण्ठ पुत्र और रुक्मिणी पुत्रीके पिता, विद्याधरोंके राजा सुकण्ठने यमराजके दूतके वेशमें आकर हे देव, मेरे भाईको मार डाला और उन कन्याओंका अपहरण कर लिया। हे प्रभु, आप दुखियोंके मित्र हैं, इसलिए मैंने अपनी पुकार आपके लिए की है // 11 // PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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