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________________ -7. 7. 12] हिन्दी अनुवाद 117 6. अरिवर्मके सैनिकोंका मनोबल कवच धारण करता हुआ एक भट कहने लगा-अब मैं जाता है और आज ही वैरीके सिरसे रणकी पूजा करता हूँ। आज बैरीके घावोंसे रक्त काढ़नेके लिए इस उत्तम तलवारपर मेरा हाथ बढ़ रहा है। कोई कहता-सीधे पैर बढ़ाकर तथा बैरीके शरीरको अपने स्वामीके सम्मुख काटकर आगमें फेंक दूंगा। हे प्रिये, आज मेरे योद्धापनको देख भी; वह किसी अच्छे कविके कवित्वके समान है। जो प्रसादगुणयुक्त सीधे पदोंमें रचा गया हो और जिसके द्वारा प्रतिस्पर्धीके काव्यको राजाके सम्मुख फाड़कर आगमें फेंक दिया गया हो। कोई कहता, ले सुन्दरी, मैंने जो शस्त्रविद्याका अध्ययन किया है उसके बलपर आज मैं रणरूपी यज्ञकी दीक्षा ले रहा हूँ। आज मेरा धनुषरूपी धर्म प्रत्यंचारूपी गुणकी झंकार कर रहा है। व आज मेरे बाणका मोक्ष होने जा रहा है। कोई कहता है, स्वामीने जो मुझे जीवन-वृत्ति ( आजीविका ) के लिए बहुतसी भूमिका धन दिया है उसका स्मरणकर मैं कभी रणमें पीछे नहीं हटूंगा। मेरा यह चंचलमन खोटी रंगरेलियोंमें खपता है। उसे रोकते-रोकते भी वह कुसंगतिमें पड़ता है। कोई कहता है-मेरा यह हृदय खलजनोंके लिए वेश्यावाड़ा बना हुआ है। अतः भला हो कि आज उसे शृगाली खा डाले। कोई कहता था-मुझपर स्वामीका ऋण बढ़ रहा है और मुझे बट्टा लग रहा है। कोई कहता-खाटपर पड़े मरकर क्या करूंगा; अच्छा है मैं बाणोंको शैय्यापर मरूं / आज में राजाके प्रसादके द्वारा सुस्वादु अपनी आयुका अथवा शत्रुकी आयुका क्षय करूंगा। ___इस प्रकार रोबसहित अपने अंगोंको मणियों, सुवर्णके कवचोंसे सजाकर सेनाएँ निकल पड़ीं। और फिर दोनों ओरके सैन्य परस्पर भिड़कर अपने बाणोंसे सूर्यको आच्छादित करने लगे // 6 // 7. संग्रामका दृश्य भटोंके मुंहसे छोड़ी हुई हाँके और ललकारें शुक्र, शक्र, चन्द्र और सूर्यको भी भयभीत करने लगीं। वज्र मुट्ठियोंसे सिर चर-चर होने लगे। चलाये हुए चक्र शत्रुके उरस्थलमें प्रविष्ट होकर चमकने लगे। विजय लक्ष्मीरूपी सुरगणिकाओंमें परस्पर ईर्ष्यालु योद्धा, देवांगनाओंके मन और नेत्रोंको चुराने लगे। छत्र, दण्ड और ध्वजाओंके समूह टूट-फूटकर सौ-सौ टुकड़े हो भूमिपर गिरने लगे। मुण्डोंके टुकड़े-टुकड़े होने लगे, और उन्हें चामुण्डा खाने लगी। रुंडोंके पिंडोंसे भेरुण्ड तृप्त हो रहे थे। सूंड व पैर कट जानेके कारण ठूठे हाथी भूतलपर लोट-पोट होने लगे। कुल, बल और वैभवका अभिमान रखनेवाले सैनिकोंका दलन होने लगा। लोहसे लथपथ हुए मृतक जिन्होंने पित्त पिया था, यमके भटों द्वारा ले जाये जाने लगे। रणके उन्मादसे मदोन्मत्त योद्धा मूर्छासे घूमने लगे और घोड़ोंके मुखोंसे निकली लारके जलसे लिप्त होने लगे। कठिन गदा प्रहारोंसे निर्दलित हुए योद्धा चलायमान भालाओं सहित लड़खड़ाने लगे। तलवारोंके संघर्षणसे उत्पन्न हुई अग्निमें भट जलने लगे तथा शूल, सेल एवं भालोंको हूलें खाने लगे। इस प्रकारके सुभटोंके घोर संग्राममें व्यालके बाणसे आहत होकर शत्रुका सेनापति उसी प्रकार धराशायी हो गया जैसे भग्न हुआ कल्पद्रुम // 7 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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