________________ .-6. 17. 15 ] हिन्दी अनुवाद 109 मानो मदसे आर्द्र लम्बी सूंडसे युक्त हाथो हो। द्वारपालने जाकर राजासे कहा-हे परमेश्वर, दो पुरुष आये हैं जिन्हें मैंने रोक दिया है। वे द्वारपर खड़े हैं। कहिए अब मैं क्या करूं ? क्या उन्हें प्रवेश करने + अथवा अभी भी रोक रखू ? इसपर प्रभु नागकुमारने कहा- उनको शीघ्र लाकर मुझको दिखलाओ। हे भद्र, भटोंका संग्रह तो मेरा भूषण है। इस प्रकार राजाके मनकी बातको जानकर द्वारपालने तुरत उन्हें लाकर प्रस्तुत किया। रण-विजयी नागकुमारने उन दोनोंको इसी प्रकार देखा जैसे राघवने सुग्रीव और हनुमानको देखा था। फिर नागकुमारने हंसमुख होते हुए, प्रसन्नतापूर्वक तथा बड़े आदरसे उनको आसन व ताम्बूल दिये। उनके नेत्र स्नेहसे विस्तीर्ण हो गये। उनको आश्वस्त करके कामदेव नागकुमारने उनसे पूछा, और उन्होंने भी अपना समस्त वृत्तान्त विधिपूर्वक कहा। फिर वे दोनों ही अपनी भुजाओंके बलसे गौरव बढ़ाते हुए कृपाण धारणकर नागकुमारके सेवक बन गये। केवल प्रजाबन्धुर नागकुमार ही अपने सुकृतका पुण्य नहीं भोगते किन्तु अन्य कोई भी जो विधिपूर्वक सत्कर्म करता है वह भी इसी प्रकार पुण्यका फल भोगता है। __इस प्रकार नागकुमार अनेक मणियों, बहुतसे रत्नों, बहुत सेवकों और बहत स्वजनोंसे सेवित होते हुए आनन्दपूर्वक रहने लगे। अन्य कोई भी जो भगवान् पुष्पदन्तकी वन्दना करता है वह भी इसी प्रकार सुखी होता है // 17 // इति महाकवि पुष्पदन्त विरचित नन्ननामांकित नागकुमारके सुन्दरचरित्ररूपो महाकाव्यमें विद्यानिधि तथा अक्षय व अभय वीरोंकी प्राप्ति नामक छठाँ परिच्छेद समाप्त / सन्धि P.P.AC. Gunratnasuri M.S.