________________ -6.17.3] हिन्दी अनुवाद 107 इधर विशाल सुप्रतिष्ठपुरके भेरियोंकी ध्वनिसे मुखर राज्य-प्रासादमें राजा विजय सिंह थे और उनके गृहरूपी सरोवरमें हस्तिनीके समान उनकी गृहिणी विजयसेना नामक थीं। उन दोनों के दो पुत्र हुए-अक्षय और अभय, जो वटको शाखाओंके समान भुजशाली थे। एक दिन वे दोनों शुद्धमनसे जिनेन्द्रको वन्दन-भक्तिसे प्रेरित होकर सुधासे धवल तथा टनटनाते हुए घण्टाको ध्वनिसे मखर जिनमन्दिरमें जाकर बैठे। उसी समय एक उपशमधारी शास्त्र-प्रवीण एक पण्डित अपने गुरुके साथ पृथ्वीपर भ्रमण करते हुए वहाँ आये। जहां वे विराजमान हुए वहाँ जाकर दोनों कुमारोंने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने देखा कि वे चतुर्विध सिद्धिकी आराधना करनेवाले तथा अपने श्रेयके अलंकारसे भूषित, अन्य कोई नहीं, श्री सोमप्रभ थे, जैसे मानो वह सौम्यकान्तियुक्त दूसरा चन्द्रमा ही हों // 15 // 16. कुमारोंको नागकुमारको जानकारी कुमारोंने उन स्वरूपवान तथा लोकके लिए आश्चर्यभूत उन सोमप्रभ मुनिके दर्शन किये। वे दोनों बालक आपसमें बोले-हाय यह विधिको कैसी अप्रिय घटना है कि समस्त शुभ लक्षणों से अंकित देहवाला, वैरियोंका विजेता, धीरियामें मन्दर पर्वतके समान, सुन्दर पुरुष भी कर्मोंका संवर करनेवाला दिगम्बर मुनि हो गया। इसने दिव्यभोगोंकी दात्री लवण समुद्रकी सीमा पर्यन्त तथा स्वर्ण और रत्नोंकी खान इस पृथ्वीका भोग क्यों नहीं किया ? उनकी यह बात सुनकर विरक्त हुए एक योगीने कहा-ये महावनमें पुण्ड्रवर्धन नामक नगरके राजा थे, किन्तु सिंहके समान स्कन्धोंवाले राजा जयन्धरका जो लक्ष्मीरूपी पद्मिनीका ईश्वर कामदेव नागकुमार नामक पुत्र है, उसके एक महान् किंकरने अत्यन्त क्रोधयुक्त होकर इस विक्रमशाली राजाको संग्राममें जीत लिया। इसपर उसने लज्जित होकर तप धारण कर लिया, और वह ज्ञानमार्गका आश्रय लेता हुआ शून्य अरण्यका निवासी हो गया। यह सुनकर राजकुमार अक्षय और अभयको विवेक उत्पन्न हुआ और वे बोले-कि जिसके सेवकने रणमें सोमप्रभ राजाको अवरुद्ध और अभिभूत किया है ( वही हमारा स्वामी है ) // 16 // 17. अक्षय और अभय नागकुमारको सेवामें 'वही जगद्विजयी हमारा राजा है' ऐसा कहकर वे दोनों गजगामी राजकुमार अपने पिताको प्रणाम कर उसी पुण्ड्रवर्धन नामक विशाल नगरको गये जो वनमें स्थित था, और जहां नाना प्रकारके लोग निवास करते थे। वहां पहुंचकर वे नागकुमारके द्वारपर खड़े हो गये, जैसे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust