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________________ 6.13.13] हिन्दी अनुवाद 103 12. वनराजको पुनः राज्यप्राप्ति करानेका प्रयत्न इधर वह भीमबल राजा अपने राज्यको भूमिका पालन करता हुआ रह रहा था। उसके महाभीम नामक पुत्र हुआ जैसे मानो स्वर्गसे च्युत होकर कोई देव आ गया हो / महाभीमके सोमप्रभ नामका नये सूर्यके समान प्रतापी पुत्र हुआ। वही इस समय पुण्ड्रवर्धनमें राज्य कर रहा है / उसी प्रकार यहां राजा अतिबलके महाबल नामक पुत्र हुआ और महाबलके यह गुणवान् वनराज नामक पुत्र हुआ है, मानो देव उतर आया हो। इस प्रकार जैसे वहां पुण्ड्रवर्धनमें उसी प्रकार यहाँ इस पट्टनमें निरन्तर चार राजाओंकी पीढ़ियाँ हो चुकी हैं / यह सुनकर नागकुमार अपने घर गया और मनमें अपने सम्बन्धी वनराजके सुखकी बात सोचने लगा। उसने व्यालभटको बुलवाया और कहा-तुम अत्यन्त पराक्रमी हो / तुम्हारे भयसे दुर्जन पहाड़ोंका सेवन करते हैं और सुजन मेदिनी सहित राज्यलक्ष्मीका उपभोग करते हैं। तुम सज्जनोंके लिए भले लगनेवाले वृक्षके समान हो और दुर्जनोंके लिए कालसर्प हो / अतः हे भद्र, तुम जाओ और शत्रुको मारकर श्वसुर की भूमि व राज्य-लक्ष्मी इन्हें दिला दो, और वह विशाल पुण्ड्रवर्धनपुर भी जो अपने घरोंको कान्तिसे चन्द्रमाको कान्तिको भी जोतता है। तब "आपके प्रसादसे ऐसा ही होगा" यह कहकर तथा स्वामीके चरण-कमलोंको नमस्कार करके व्याल शत्रुके उस दुर्लध्य प्राकारवाले नगरको गया // 12 // 13. व्यालका शान्तिपूर्वक कार्यसिद्धिका प्रयास वह व्याल नामका भट जो शत्रुओंका विनाशक था, जिसका बल दूसरोंके द्वारा अजेय था तथा जो स्त्रियोंके लिए मनमोहक था वह पुण्डवर्धनके नरेश सोमप्रभके समस्त सभाभवनमें से प्रविष्ट होता हुआ राजाके पास पहुँचा और बोला-हे राजपुत्र, क्या तुम उन निश्शंक तथा अपने कुलरूपी आकाशके चन्द्र मेरे नरेन्द्र मकरकेतु नागकुमारको नहीं जानते? वे यशसे अत्यन्त उज्ज्वल हैं। उनका 'प्रजा बन्धुर' भी नाम है। वे शूरवीर हैं और सुमेरु पर्वतके समान धैर्यवान् तथा अपनी ऋद्धिसे समृद्ध हैं। वे ही तुम्हारे विरुद्ध खड़े हैं। उन्होंने योद्धाओंको एकत्र कर, गजोंको सजाकर, घोड़ोंको हाँककर, रथोंको जोतकर, सैन्यको सम्बोधित कर व उसे रणमें जुझाकर भयको भग्नकर मुझे जीता है, वह मैं पृथ्वीको भग्न करनेवाला तेरा कृतान्त हूँ। यह सुनकर P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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