________________ . प्रस्तावना 19 अनुसार उन्हें तुरन्त मुनिदीक्षा ले लेना चाहिए। किन्तु उनकी माताने स्वप्नके प्रभावको दूर करनेके लिए देवीको एक पशुका बलिदान चढ़ानेका प्रस्ताव किया। राजा इससे सहमत नहीं हुआ। अन्ततः एक आटेका मुर्गा बनाकर उसकी बलि चढ़ायी गयी। यह भी राजा यशोधरको अच्छा नहीं लगा। वे पुनः तत्काल प्रवजित होनेकी इच्छा करने लगे। किन्तु उनकी रानीने कपटभावसे उन्हें रोका और एक भोजका आयोजन किया जिसमें उसने विषमिश्रित आहार देकर यशोधर और उसकी माता चन्द्रमतीका घात कर दिया / उस मिथ्या कुक्कुटके बलिदानके पापसे यशोधरका जोव अपने अगले जन्ममें कुक्कुट हुआ और उसकी माता हुई एक कूकरी। संयोशवश ये दोनों यशोधरके उत्तराधिकारी यशोमतिके महल में पहुँच गये और वहाँ अपनी पूर्वजन्म की पत्नीके वैसे ही दुश्चरित्रसे रुष्ट होकर कुक्कुटने उसपर आघात किया। इसपर अन्त:पुरके अनेक दास-दासियोंके साथ वह कूकरी भी उसपर टूट पड़ी और उसे मार डाला / वह कुक्कुट राजाका प्रिय हो गया था इसलिए राजाने रुष्ट होकर उस कूकरी को मार डाला। इस प्रकार मरकर अपने तीसरे जन्ममें यशोधर नकुल हुआ और उसको माता चन्द्र मतो सर्प हुई। प्रसंगवश नकुलने उस सर्पको खा लिया और उस नकूलको एक तरक्षने मार डाला / ( सन्धि 2) अपने चौथे जन्ममें यशोधर मरकर क्षिप्रानदीमें एक मछली हुआ और उसकी माता हुई विशाल मगर ( सुंसुमार ) / एक बार जब राजप्रासादको दासियां वहां जलक्रीड़ा कर रही थीं तब उस मगरने एक दासीको पकड़ लिया। राजपुरुषोंने आकर मगर और उस मछली दोनोंको पकड़ लिया। राजा यशोमतिने उस मछलीसे अपने पिता यशोधरका श्राद्ध किया। पांचवें जन्ममें माता चन्द्रमती हुई एक बकरी और यशोधर उससे ही उत्पन्न हुआ एक बकरा। बकरा मार डाला गया और उसने पुनः उसी अपनो पूर्वमाता बकरीके उदरमें जन्म लिया / बकरी राजा यशोमति द्वारा मारो गयो, किन्तु उसके उदर से उत्पन्न यशोधरका जीव बकरा बच गया। बड़ा होनेपर रानीने उसे भी भोजके लिए मरवा डाला। इसके पश्चात् इन माता-पुत्रोंके जीव महिष व कुक्कुटको योनिमें उत्पन्न हुए। जब इस मुर्गेको राजपुरुष नगरके बाहर कुक्कुटयुद्धका खेल कराने ले गया था तब प्रसंगवश वहाँ एक जैनमुनि का उपदेश पाकर वह राजपुरुष तो धर्मानुयायी हो गया और यशोधर तथा उसकी माताके जीवोंको अपने पूर्वभवों का स्मरण हो आया / वे दोनों राजा यशोमतिके बाणसे मृत्यु पाकर उन्होंकी रानी कुसमावलीके गर्भसे जुडवा ( युगल ) उत्पन्न हुए / उनका नाम रखा गया अभयरुचि और अभयमती। एक बार यशोमतिनरेश अपने पांच सौ कुत्तोंको लेकर वनमें शिकारके लिए गये थे। वहां उसने अपने कुत्तोंको ध्यानस्थ मुनि सुदत्तपर छोड़ दिया। किन्तु मुनिके प्रभावसे वे कुत्ते नमन करते हुए निस्तब्ध रह गये। इसपर राजाने मुनिको मारनेके लिए अपनी तलवार निकाल ली। उसी समय राजाके एक कल्याणमित्र सेठने बीचमें पड़कर राजाको रोका और उन्हें बतलाया कि ये मुनि कलिंगदेशका राज्य छोड़कर दीक्षित हुए हैं / राजाके भाव बदल गये और उसने मुनिसे अपने पूर्वजोंके भवान्तर जानने की इच्छा प्रकट को / उस वर्णनमें मुनिने बतलाया कि उसके पिता और पितामही हो वर्तमान में उसके पुत्र-पुत्रो अभयरुचि ओर अभयमतो हैं एवं उसकी माता पांचवें नरक में है / ( सन्धि 3) / मुनिके इस व्याख्यानने यशोमतिके हृदयको परिवर्तित कर दिया और उन्होंने प्रव्रज्या धारण करनेको ठान ली। राजकुमार और राजकुमारोको भो बहुत विरक्ति हुई और कुछ समय पश्चात् वे दोनों हो सुदत्तमुनि के संघमें क्षुल्लक रूपमें प्रविष्ट हो गये। अभयरुचिने राजा मारिदत्तको बतलाया कि वे अपनी बहनसहित सुदत्तमुनिके साथ विहार करते हुए उस नगरमें आये और वहीं उन्हें राजपुरुषोंने पकड़कर इस चण्डमारीके मन्दिर में प्रविष्ट कराया। यह सब सुनकर राजा मारिदत्तको भी संसारसे विरक्ति हो गयी / उसो समय सुदत्तमुनि भी वहां आ पहुँचे और उन्होंने राजा मारिदत्त तथा भैरवानन्दके पूर्वभवोंका भी वर्णन सुना दिया। वे सभी जैन धर्मावलम्बी हो गये। अभयरुचिने अब मुनिव्रत धारण कर लिये और अभयमतीने आर्यिकाव्रत / आयुके अन्तमें वे मरकर ईशानस्वर्ग में देव हुए / ( सन्धि 4) इस प्रकार इस कथानकमें पांच-सात जन्म-जन्मान्तरोंके वृत्तान्त समाविष्ट किये गये हैं और उनके P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust