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________________ 101 --6. 11. 11 ] हिन्दी अनुवाद 10. नागकुमारकी श्रुतिधर आचार्यसे भेंट उत्तम भवन, यान, वाहन, शयनासन, पान, भोजन, सुन्दर युवती तथा वस्त्राभूषण, इन सबकी प्राप्ति धर्मसे ही होती है। धन्य है वह पुरुष जो अतिथियोंको घृतसे भरपूर उत्तम भात, चन्द्र व कुन्द सदश उज्ज्वल कान्तिसे युक्त अच्छा दधि तथा मिरचके टुकड़ोंसे चिरपिरा सागका भोजन कराता है और बारंबार कराता रहेगा। फिर किसी अन्य दिन मकरकेतु नागकुमारने नन्दनवनके बीच चन्द्रमाके समान निर्मल स्फटिकशिलाके ऊपर बैठे हुए व्रतों और क्रियाओंके करने वाले श्रुतिधर नामक परम आचार्यके दर्शन किये, उनकी पुनः-पुनः वन्दना की और प्रफुल्लित हुए। उन्होंने फिर यतिसे धर्मका स्वरूप पूछा / यतिने कहा-जो समस्त जीवोंकी दया करता है, झूठ वचन नहीं कहता, सत्य और शौचमें रुचि रखता है, चुगुलखोरी, अग्निके समान कर्कश वचन, ताड़न, बन्धन व अन्य प्रकारको पीड़ा विधिका प्रयोग नहीं करता, क्षीण, भीरु, दोन और अनाथोंपर कृपा करता है, मधुर करुणापूर्ण वचन बोलता है, दूसरेके धन पर कभी मन नहीं चलाता, बिना दी हुई वस्तुको ग्रहण नहीं करता, अपनी प्रिय पत्नीसे ही रमण करता है, परायो स्त्रीपर दृष्टि नहीं चलाता, पराये धनको तृणके समान गिनता है और गुणवानोंकी भक्तिसहित स्तुति करता है, जो अभंग रूप से इन धर्मों के अंगोंका पालन करता है वही धर्मका स्वरूप है। और क्या धर्मके सिरपर कोई ऊँचे सींग लगे रहते हैं / / 10 / / 11. वनराजको वंशावलि तत्पश्चात् नागकुमारने यतिसे पूछा- क्या वनराज किरात है ? कोई क्षत्रिय राजा नहीं ? क्या कहीं राजा भी वनमें निवास करते हैं ? यह भ्रान्ति मेरे मनमें बनी हुई है, मिटती नहीं। तब मुनि ने कहा-सुनो! नानागृहोंसे युक्त सुप्रसिद्ध पुण्ड्रवर्धन नामक नगरमें अपराजित नामका राजा था जो समस्त दुःखोंसे रहित, चन्द्रवंशी और चन्द्रमाके समान ही मुखधारी था। उसको दो पटरानियां थीं, सत्यवती और वसुन्धरा, जो स्नेहसे उज्ज्वल तथा धान्य और सम्पत्ति की रक्षा करनेवाली थीं। उनमें से एक अर्थात् सत्यवतीका पुत्र अतिवल हुआ, और दूसरी अर्थात् वसुन्धरा का पुत्र हुआ भीमबल जो खलोंका दलन करनेवाला था। अपराजित अपना राज्य छोड़कर ऋषि हो गया तथा इन्द्रियोंके विषयोंका त्याग करता हुआ रहने लगा। इधर अपनी भुजाओंके बलसे चलायमान होकर भीमबलने अतिबलका राज्य छुड़ा लिया। अतिबल अपनी सेना सहित वहांसे निकल पड़ा और हे भद्र, वह यहां आकर उतरा। उसीने यह फलों और फूलोंके बड़े बगीचों, पत्रपुष्पोंको नाना दुकानों तथा बहुत प्रकारके उद्योग-धन्धोंकी प्रवृत्ति सहित यह पट्टन नगर बसाया // 11 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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