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________________ -6. 6. 13 ] हिन्दी अनुवाद राज्यको आकांक्षाके वशीभूत एवं लक्ष्मीके सुखोंका उपभोग करनेवाले राजाओंमें ऐसे कौन हैं, जो नारको गणों द्वारा मारो-मारो ध्वनिसे गूंजते हुए रौरव नरकमें जाकर नहीं पड़ते // 4 // 5. जितशत्रुका वैराग्य (सुव्रतमुनिका यह उपदेश सुनकर जितशत्रु बोले) हे परमेश्वर, मै भी अब अपने दुष्कर्मोंका परिहार करूंगा। राज्यसे क्या लाभ ? अब तो मैं तप करूंगा। तब मुनिने जान लिया कि वह चरम शरीरी (इसी जन्ममें मोक्षगामी) है / अतः उन्होंने उसे बहुप्रकार शील गुणोंके पालनरूप मुनिदीक्षा दे दी। मुनिराजने महावत बनकर जितशत्रुका जो मनरूपो हाथी इन्द्रिय सुखरूपी वृक्षोंके पल्लवोंका रसिक था, उसे ज्ञानके अंकुशसे रोका, स्वाध्यायको सुदृढ़ शृंखलासे निरुद्ध किया, शास्त्रप्रवचनोंके वचनसे सम्बोधित किया, तथा दुश्चरित्रसे वर्जितकर शुभ ध्यानरूपी खम्भेसे बांध रखा और इस प्रकार उसे आत्म-स्वभावके मार्गपर स्थापित किया। कहिए, ऐसा कौन सा पाप है, जो धर्मके द्वारा न खपाया जा सके ? इसी अवसरपर वे विज्ञान और भोगका वरदान देनेवाली योगिनी विद्याएँ आ उपस्थित हुई और बोलीं-आपकी रुचि तो अब जैन शासनमें चली गयी, अब आपको हमसे कोई काम नहीं रहा। तो कहिए, कहिए, अब हम किसपर उतरें अर्थात् किसके पास जावें। हम आपकी दासियां हैं। अतः आपकी ही आज्ञाका पालन करेंगी। इसपर जितशत्रुने अपने पापहारी गुरुसे पूछा-इन विद्याओंके योग्य कौन उत्कृष्ट पुरुष है ? गुरुने कहा कामके मदका विनाश करनेवाले बाईसवें जिनवर (नेमिनाथ तीर्थकर ) के निर्वाणके पश्चात् राज्यलक्ष्मीके सहायक जयन्धर राजाके नागकुमार पुत्र होगा, वही इन विद्याओंका प्रभु होगा और इन्हें आदेश देगा / / 5 / / 6. विद्याओंके नाम शत्रुविजयी जितशत्रुने मुनि होकर शत्रुओंको भयकारी उन समस्त विद्याओंके समूहको अपने मनकी कल्पना द्वारा मुझे समर्पित कर दिया। उन विद्याओंमें कोई दिगम्बर ( सर्वथा नग्न ) थी, तो कोई लम्बे दांत दिखलानेवाली। किसीके लम्बे नख थे तो किसोके केश ताम्र वर्ण थे। कोई अनेक जिह्वाओंवाली, तो कोई अनेक लोचनोंवाली / कोई कंकालिनी, कापालिनी, शतशूलिका, लम्बस्तना, भयोत्पादिका, सन्तापनिका, विद्रावणिका सम्मोहनिका, उम्मोदनिका, संक्षोभणिका, अक्षोभनिका, उत्तारणिका, आरोहणिका, सम्बोनिका, P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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