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________________ हिन्दी अनुवाद 93 -6. 4. 12] समीप आ गया। ज्योंही उन विद्यादेवियों ने घोषणा की कि हे देव, कहिए हम क्या करें, तभी सहसा उसके कानमें जगपूरक तूर्यनाद सुनाई पड़ा। . उसने अपने सन्निकट खड़ी आलोकिनी विद्याकी ओर देखकर पूछा-यह भुवनका विमर्दन करनेवाली तूर्यवाद्यको ध्वनि क्यों हो रही है ? // 2 // 3. जितशत्रु द्वारा सुव्रत मुनिकी स्तुति आलोकिनी विद्याने जितशत्रुसे कहा-व्रत परिपालनमें अनुरक्त तथा विषय और कषायोंकी आसक्तिका अपहरण करनेवाले परमेष्ठी नमिनाथ जिनेन्द्रके गणधर सुव्रत मुनिको घातियाकर्मरजका नाश होनेसे केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है / इसीलिए वहां नाना वाद्योंकी ध्वनिसे भुवनको भरते हुए विविध देवोंका आगमन हुआ है। यह सुनकर जितशत्रु वहाँसे निकला और जाकर उसो केवलज्ञानरूपी लक्ष्मोसे शोभायमान केवलीमुनिका दर्शन किया। वह उनकी स्तुति करने लः [-हे परमेश्वर, आप ही मेरे लिए शरण हैं / आपने इन्द्रियों तथा ज्ञानावरण कर्मका विनाश किया है। कर्मरजरूपी जलप्रवाहपर आपने बांध बांध दिया है। तथा संसारके जन्म-मरणका विध्वंस कर डाला है। आपने आते हुए यमके दूतको रोक दिया और पाँचों प्रकारको इन्द्रियोंकी वृत्तिको जीत लिया है। आपने न तो मणि और सुवर्णके आभूषण ग्रहण किये और न अपन देहका भरण पोषण किया। ___ आपने राज्यश्रीका तनिक भी सम्मान नहीं किया तथा माणिक्य और तृणको एक समान माना / आप दुर्जन तथा सुजनपर समताभाव रखते हैं, तथा पर्वतके समान धीर, वीर, महाश्रमण हैं / हे मुनिवर-श्रेष्ठ सुव्रत आप साधुओंके द्वारा प्रशंसित अहिंसासे भूषित जिन हैं, और आप ही सुधर्म भट्टारक हैं // 3 // 4. सुव्रत केवलीका धर्मोपदेश अन्तःपुर की स्त्रियां अन्ततः छाती पीटती रह जाती हैं। भला वे मृत्युकालके आनेपर कर ही क्या सकती हैं ? यमराजके सम्मुख कवच क्या रक्षा कर सकता है ? क्या छत्रसे आच्छादित होकर मृत्युसे बच सकता है ? मरणके दिन कहीं भी उसकी रक्षा नहीं हो सकती। उस समय की वायु भी श्वासोच्छ्वासको अवरुद्ध कर देती है। मनुष्य राजमुकुट बांधकर सुखसे वास करता है, तो क्या उसका आयुबन्ध क्षीण नहीं होता ? कहिए, राजाके किंकर निर्भय हाथ चलानेवाले यमके किंकरोंका क्या कर लेते हैं ? हत्यारे कालके द्वारा हय (घोड़े) क्या आहत नहीं होते ? उसके आगे पर्वतोंके समान गजसमूह भी चले जाते हैं। रथोंके द्वारा भी यमके घातसे रक्षा नहीं होती। इतने पर भी न जाने क्यों मनुष्योंको राज्यका ग्रह लगता है ? राज्यत्व तो होकर क्षणभरमें इस प्रकार नष्ट हो जाता है, जिस प्रकार सन्ध्याकालका आकाशी रंग। अपने भयवश कांपकर मनुष्य लुकता-छिपता है, किन्तु आती हुई मृत्युको कोई दुर्ग नहीं रोक सकता। प्रभावान् मनुष्य भी पसीनेको वेदनासे अंकित होता है। ध्वजा-पताकासे विनाशका चिह्न ढका नहीं जा सकता। खड्गरूपी जलसे महान् पापरूपी वृक्ष अपनी दोघ शाखा-प्रशाखाओंका प्रसार करता हुआ बढ़ता है / उसी पापतरुके दुःखरूपो फलको जब चखता है, तब अपने मुखकमलको मरोड़ने लगता है / PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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