________________ सन्धि 6 1. कांचनगुफामें प्रवेश और विद्याओंकी प्राप्ति स्नेहका बन्धन बांधकर, भीमासुरका मनोरंजन कर, कर्ण और हृदयहारी बातचीत कर, तथा उस कालगुफाके मुखसे निकलकर जब श्री नागकुमार उस विपुल वनके मार्गसे चल रहे थे जहां सिंहोंके छौने हरिणोंका बध करते थे, तब उन्होंने पूछा-क्या तुमने यहाँ कोई अन्य आश्चर्यका स्थान देखा है ? यदि देखा है तो तुम मुझे सच-सच बतला दो। उपकारकके समक्ष अपना हृदय कौन छिपा सकता है ? इसपर वह शबर कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया और कुछ बोलकर उसने कांचनगुफा दिखला दो। तब वह पुरुषसिंह व्यालसहित उस पर्वतको कम्पित करता हुआ तत्काल उस गुफामें प्रविष्ट हुआ। वहाँ मणिमयी मेखलाको घुघरियोंकी ध्वनि करती हुई सुदर्शना नामक चन्द्रमुखी देवी पूजापात्र लेकर रतिरमण ( नागकुमार ) के सम्मुख आ उपस्थित हुई। उसने शीघ्र अतिथि-सत्कार किया और स्वयं बोल उठी हे भयभंजन, मैंने नमिनाथके तीर्थसे लेकर आजतक इन विद्यापुंजोंका संरक्षण किया है। यह बहुत अच्छा हुआ जो आप आ गये। हे नृप, हे सुन्दर, आप विशाल बुद्धिमान हैं / ___ तब मकरध्वज बोले मुझे ये विद्याएँ कहाँ सिद्ध हुई ? हे सुरशारदे, इस सम्बन्धका समस्त विवरण मुझे कहिए // 1 // 2. विद्याओंकी उपलब्धि तब सूदर्शनाने कहा-वनजीवोंसे भरे हुए यहाँ रजतपर्वतपर स्थित अलकापुरमें विद्युत्प्रभ नामका खेचर राजा था। उसकी हंसगामिनी पत्नीका नाम विमला था। उनका पुत्र जितशत्रु यहाँ आया, और वह मेरे मन में समा गया। यहाँ रहकर उसने नमिनाथ तीर्थंकरको नमन किया और यहों रहकर उसने मन्त्रका जाप किया। जल, घृत, दधि और दूधसे मिश्रित तक जलसे गीला किया हुआ शुद्ध ओदनके आहारको ग्रहण किया। उसका मांस और रुधिर सूख गया। इस आचारका पालन करते हुए उस सुन्दर खेचर पुत्रके निष भाव सहित बारह वर्ष बीत गये। उसने जो देवोंको सुखकारी अक्षर ( ॐ ) का ध्यान किया उससे विद्याओंका समूह उसके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust