SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -5. 13. 11 ] हिन्दी अनुवाद 89 रत्नकरण्ड नामकी शैया भी समर्पित की। असुरने प्रार्थना की-हे ललित-लील, हे ललनाओंके वर, हे कामदेवके पुष्पबाणोंका प्रसार करनेवाले तथा हस्तीके सूंड़ सदृश सुदृढ़ भुजशाली, इन सब रत्नोंको लीजिए-लोजिए। मैंने आपके निमित्तसे ही इन्हें रक्षित रखा है। अतएव हे प्रभु, दिव्य चित्तसे इन्हें ग्रहण कीजिए। मैंने जो इस वनचरको पत्नीका अपहरण किया वह भी हे प्रभु, आपके आगमनके कारणसे ही। इसपर नागकुमारने कहा-उस मनोहारिणी व सुखकारिणी शबरीको उसके पति शबरको दे दो / असुरने उसे भो तुरत समर्पित कर दिया, और उस भीलने प्रफुल्लित होते हुए उसका अवलोकन किया। फिर प्रभु नागकुमारने कहा-हे दानव, देखो अभी और उन्हें ये सब रत्न सौंप देना। * वह त्रिभुवन रतिरूपी कन्यारत्न, वह खड्ग तथा वह मणिमय शैया इस जगत्में रतिसे विराजमान तथा पुष्प समान दाँतोंके तेजसे समृद्ध मदनके ही होते हैं // 13 // * इति नन्ननामांकित महाकवि पुष्पदन्त विरचित नागकुमारके सुन्दरचरित्ररूपी महाकाव्यमें कन्या, तलवार तथा दिव्य शैयाकी प्राप्ति नामक पंचम परिच्छेद समाप्त / सन्धि // 5 // P.P.AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy