________________ हिन्दी अनुवाद 10. विवाह व रम्यक वनको वार्ता तब राजाने स्वजनोंके लिए उत्साहवर्धक ऐसा उन दोनोंका विवाह रचाया / नयी मूगके समान मनोहरमुखी व अति लावण्यवती कन्याका दान कर दिया गया। राजकुमारी नागकुमारके संग लग गयी, जिससे उसकी अभिलाषा पूर्ण हुई और उसे मनोवांछित संसर्ग मिला। राजाने नागकुमारको पूर्व पत्नियों किन्नरी और मनोहरीको अपनी पुत्रियोंके समान रखा। उन्होंने व्यालका भी नागकुमारके स्वागतानुसार हो सम्मान किया। इस प्रकार जब वे नन्दके राजभवनमें सब प्रकारके भोगों और सुखोंका उपभोग करते हए रहते थे. तब उस भवन में सागरदत्त नामका बहत धनवान वणिक पत्र आया। उसने समस दारिद्रय दूर करने योग्य सुवर्ण तथा चन्द्रमाके समान चमकदार मोतियोंकी माला भेंट करके उदित होते हुए विशाल पूर्णिमाचन्द्रके समान आनन्ददायो राजा नन्दके दर्शन किये। मणियोंकी भेंट चढाकर उस गणी वणिकने मेघ-ध्वनिके समान मघर भाषण किया-नये हरे उद्यानोंवाले ... तथा कोकिलोंके कलरवसे काम विलास उत्पन्न करनेवाले इस नगरमें हम आपके चरणोंकी छायामें रहते हैं, जहां चोरों और व्यभिचारियोंको सब बाधाएँ खण्डित हो गयी हैं। इतना ही कह पाया था कि राजा की आज्ञासे वणिक चुप हो गया। फिर किसी अन्यदिन रतिपति नागकुमारने उस वणिक्से पूछा-क्या तुमने ( अपनी यात्राके बीच ) कोई कौतूहल देखा? तब उस वैश्यने विस्तारसे बतलाया-रम्यक वनमें एक सूर्यस्पर्शी ऊंचा त्रिकूट पर्वत है। उसके तल भागमें एक उज्ज्वल भूतिलक जिन मन्दिर है, जो डोलते हुए कदली वनसे घिरा है। उसका मणिशिखर पूरा सुवर्णमय है जो उदित होते हुए सूर्यको किरणोंको भी तिरस्कृत करता है। आश्चर्य है कि उसका कपाट ऐसा मुद्रित है कि इन्द्रके वज्रसे भी भेदा नहीं जाता। वह दिनरात ढका ( बन्द ) रहता है जिससे किसीको भी वहां . प्रतिष्ठित जिनेन्द्रके मुखदर्शनका लाभ नहीं मिलता। एक और बात यह है कि वहां एक शबर रहता है जो मोरके पंखोंका परिधान रखता है, और धनुष बाण धारण किये हुए है। हे राजन्, वह निरन्तर अन्याय-अन्यायको पुकार लगाता रहता है / किन्तु उसके नेत्रोंसे झरते हुए अश्रुजलको कोई पोंछनेवाला नहीं है। यह सुनकर मानिनियोंके मनका मंथन करनेवाला कामदेव नागकुमार अपनी उन कुंजरके समान लीलागामिनी कामिनियों, अपने मित्र व सैन्य सहित उस पर्वतके गहन ( वन ) की ओर "चल पड़ा // 10 // 11. वन, मन्दिर और पुलिन्दका दर्शन नागकुमार रम्यक वनमें पहुंचा। वहां उसने वनसे मण्डित उस भूमिको देखा जहाँ गजोंके दांतोंसे आहत होकर चन्दन वृक्षोंका रस झर रहा था। जो उस चन्दन रसको कीचड़के कारण दुर्गम हो रहा था और जहाँ भौंरे गुंजार कर रहे थे। जहां स्फटिककी शिलाओंके ऊपर उत्तम देव बैठे हुए थे और जहां सिंहोंके नखोंसे विदारित हाथियोंके कुम्भस्थलोंसे रक्त-लिप्त मुक्ताफल बिखरे PP.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust