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________________ -5.7. 12] हिन्दी-अनुवाद ६.क्षमायाचना और कन्याका सम्मान __ दुवंचन बोला-हे देवदेव, हे दुर्जनोंका तिरस्कार करनेवाले परमेश्वर, हे कुलभूषण, मुझे क्षमा कीजिए और यह बतलाइए कि ये कुमार कौन हैं तथा कहाँसे आये हैं ? इनके शरीरमें तो अनुपम लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं / इसपर मथुराधीश व्यालने कहा-क्या तुम नहीं जानते कि ये जगत्श्रेष्ठ मेरे स्वामी हैं / वे जयन्धर नरेशके पुत्र हैं जो मानो नागमणियोंसे उकेरकर बनाये गये हों। तब दुर्वचन मन्त्रीने कहा-जो आपका राजा है वह हमारा तो राजाधिराजके समान है / मुझे क्षमा करें। अथवा यदि चाहें तो दण्डस्वरूप मेरे इन कुण्डलोंसे विभूषित गण्डस्थलों वाले सिररूपी कमलका छेदन कर लें। जैसी जानकारी होती है उसी अनुसार अनुष्ठान किया जाता है। किन्तु अब तो मेरा समस्त मात्सर्य नष्ट हो गया है। यह सुनकर व्याल उसे वहां ले गया जहाँ भटोंके चूड़ामणि नागकुमार विराजमान थे। सुभट व्यालने कहा-हे नृपश्रेष्ठ, हे भट्टारक, यह मथुरा हमारी नगरी है, और यह मेरा मन्त्री है। अब कहिए क्या किया जाये? यदि कहें तो तत्काल इसे दिशाओंकी बलि चढ़ा दिया जाये / व्यालने अपना शेष पूर्व वृत्तान्त भी कह सुनाया / इसपर रमणीश्वर नागकुमार खूब सन्तुष्ट हुए। / उन्होंने उस कन्याको अपनी भगिनी माना और उसका खूब गौरव किया। तथा बहुतसे परिवारसहित उसको विदा कर दी। वह ललित लताको भी जीतनेवाली सुकुमारी अपने पिताके नगरको चली गयी // 6 // 7. काश्मीरकी राजकुमारीकी प्रतिज्ञा अपने मनोरथको पूरा कर नागकुमार मथुरामें रहने लगा, जैसे मालतीको सुगन्धसे सन्तुष्ट हुआ भ्रमर / एक दिन जब वह नन्दन वनमें क्रीडा करते हुए कहीं केतकोके पुष्पोंकी सुगन्ध लेता था, कहीं पुन्नाग पुष्पोंको पुण्यके समान ग्रहण करता था और कहीं कमलके ऊपर अपना हस्तकमल चलाता था, तब उसने संगीत कलाके जानकार पांच सौ वीणावादकोंको देखा। कुमारने उनके प्रमुख एक राजकुमारको देखा और उससे पूछा-आपने वीणाके अभ्यासका क्या फल देखा है ? . इसपर उस जालन्धरके राजेशने बतलाया कि काश्मीर देशके काश्मीर नामक प्रसिद्ध नगरका उज्ज्वल कीर्तिवान् नन्दि नामका राजा और मन्दोदरीके समान नन्दमती नामक कृशोदरी उसकी पटरानी है। उनकी पुत्री त्रिभुवनरति नामकी है जिसका क्या वर्णन किया जाये ? विधाता भी उसका वर्णन करते झिझकता है। वह वीणा-वाद्यमें इतनी प्रवीण है जितनी परमपूज्य सुखदात्री वागेश्वरी। जो कोई आलापिणी वीणा द्वारा उस सुन्दरी राजकुमारीको सन्तोष उत्पन्न करे और उसे जीत ले उसी कलाकारकी वह अपने नेत्रोंसे बालमृगोंको भी तिरस्कृत करनेवाली बालिका प्रियतम गृहिणी होगी // 7 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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