SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 73 4. 15.15] हिन्दी अनुवाद आशा पूरी करनेवाले, आप इन्हें मारिए, मारिए / यह सुनकर उस शत्रुभटोंका विनाश करनेवाले व्यालने एक हस्ति-स्तम्भको उखाड़ लिया और वह सुभट उन आये हुए भटोंसे युद्ध में भिड़कर 'घनी मारामार करने लगा। वह जयवतीका पुत्र व्याल चारों ओरसे उन रुष्ट भटोंसे घिर जानेपर उनसे भिड़ता, बल खाता, रंग दिखलाता, बाहर आता, प्रहार करता, प्रतिप्रहारोंको रोकता व स्तब्ध होता हुआ दिखाई देने लगा // 14 // 15. व्यालको विजय व नागकुमारको परदेश यात्रा वह महाशूरवीर व्याल अपनी मारसे कम्पायमान शत्रुओंको पेलता, दलता, मलता और उछालता था। तथा उनको खींचकर पकड़ता, हटाता, पछाड़ता, और चूर-चूर करके उनके प्राणोंका अपहरण करता था। इस प्रकार उस स्तम्भसे उसने शत्रुके किंकरोंको मार डाला और उनके शरीरोंको मानो दिशाओंकी बलि चढ़ा दिया / खड्गसे खड्ग टकराकर खनखनाते और भाले टूटकर कसमसाते थे। आँतें और अंतड़ियाँ निकल-निकलकर चरचराती थीं, तथा लोहू झरकर सलसलाता था। चर्म लम्बे होकर लटक रहे थे और हड्डियां मुड़-मुड़कर करकराती थीं। शुण्ड दौड़ दौड़कर दरबड़ा रहे थे। और मुण्ड गिर गिरकर हुंकार भरते थे। डाकिनी और बेताल किलकिला रहे थे। इस प्रकार जब रिपुके समस्त किंकरोंका हनन हो गया तब नागकुमार अन्तःपुरसे निकला। भारी कोलाहल हो उठा, रण जीत लिया गया और वीर व्यालने अपने स्वामीको प्रणाम किया। रुष्ट होकर जब नागकुमार अपने बैरी भ्राताके ऊपर चला तभी बीचमें ही नयन्धर मन्त्री उसे मिला। वह नागकुमारसे बोला तुम्हें पिताका कहना है कि इस पृथ्वी मण्डलपर राजा तो तुम्ही होगे किन्तु अभी इस कुलको कलहके कारण तुम कहीं अन्यत्र निकलकर चले जाओं / जब मैं तुम्हें बुलाऊँ तब तुम कभी भी लौट आना। तब कुमारने अपने पिताको प्रतिष्ठाको रखा और आती हुई अपनी माताको भी रोक दिया। फिर वह अपने उस युवक भृत्य व्याल सहित तथा सैन्य सहित शत्र नरोंका मन्थन करनेवाला एवं पुष्पोंके समान दांतोंवाला मन्मथ ( कामदेव नागकुमार ) जाकर देवोंका भी मनोरंजन करनेवाले मथुरापुरमें रहा // 15 // इति नन्ननामांकितमहाकवि पुष्पदन्त विरचित नागकुमारके सुन्दरचरित्ररूप महाकाव्यमें व्याल वीरकी प्राप्ति नामक चतुर्थ परिच्छेद समाप्त / सन्धि // 4 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy