________________ 71 -4. 14. 10 ] हिन्दी अनुवाद लोगोंके देखते-देखते व्यालका तृतीय नेत्र लुप्त हो गया। लोगों ने कहा-अरे इस पथिकका वह आश्चर्य उत्पन्न करनेवाला तोसरा नेत्र मदनके दर्शनमात्रसे यमराजके पास पहुँच गया // 12 // 13. भविष्यवाणीका स्मरण कर व्यालने नागकुमारको सेवा स्वीकार की तब अपने दोनों नेत्रोंको अपने दोनों हाथोंसे ढंककर व्यालने देखनेका प्रयत्न किया, किन्तु देवगृहोंसे शोभायमान वह महानगर उसे दिखाई नहीं दिया। . अब व्यालको उन संयमी मुनिके सुन्दर वचनका स्मरण हुआ जिसमें कहा गया था कि जिसके दर्शन मात्रसे कपालका नेत्र लुप्त हो जावेगा वही तुम्हारा स्वामी होगा। इसपर व्यालने अभिमान छोड़कर हाथोकी सूंड सहश भुजशाली नागकुमारके समीप जाकर उसे अपना स्वामी कहा और उसको जय बोली। नागकुमारने कहा-शत्रु सैन्यके बलको नष्ट करनेवाला यह कोई नया नर श्रेष्ठ है जो अपने सिंहासनसे च्युत हो गया है / वह हाथोको देखकर भी अपने स्थानसे नहीं हटा, अतएव अवश्य हो यह हमारे जैसा कोई महानुभाव है। अतएव अब मैं इसका हाथ पकड़ कर सुनूं कि यह स्नेहशील धीर पुरुष क्या कहना चाहता है। इसी बोच वह सुभट ब्याल नोति ओर विनय सहित परमेश्वर नागकुमारके सम्मुख सर्वांग प्रणाम करने लगा जिससे उसका शरीर हाथीके पैरोंके नखोंमें प्रतिबिम्बित हो गया। वह बोला-आप मेरे प्रभु हैं और मैं आपका दास हूँ। यह बात मैंने अपने नेत्रके लुप्त होनेसे जान ली है। इसपर नागकुमारने कहातुम तो मेरे बन्धु हो। आओ-आओ भाई, इस गजेन्द्रपर चढ़ो जो अपने कानोंके पवनसे भ्रमर समूहको घुमा रहा है। इस प्रकार नागकुमारने उसके साथ सम्भाषण किया तथा सम्मानसे उसे सन्तुष्ट किया। वह हाथीपर आरूढ़ होकर ऐसा सुन्दर दिखाई दिया जैसे उदयकालमें सूर्य / नागकुमार उस सुन्दर व्यालको अपने भवनमें ले गया। जहाँ प्रभु कामातुर होते हुए अन्तःपुरमें प्रविष्ट हुए वहाँ भी उन्होंने कलिकालके मैलसे रहित उस भटको अन्यत्र नहीं भेजा और वह गिरिवरके समान द्वारपर उपस्थित रहा // 13 // . 14. श्रीधरका विश्वासघात और व्यालको शूरवीरता इसी समय एक चरने जाकर कहा-हे श्रीधर, आप अपने किंकरोंको शीघ्र भेजिए, जो ऐसे शूरवीर हों जो हाथियोंके दाँतोंके अग्रभागोंसे भिड़ सकें और जो शत्रुके सैनिकोंको मार सकें। ___ इस समय तुम्हारा विष व अग्निके समान शत्रु अकेला अपने शयनागारमें क्रीड़ा कर रहा है। यदि अपने इस मात्सर्यपूर्ण शत्रुका आज हनन नहीं किया गया तो वह पीछे शल्यके समान दुःखदायी होगा। तब श्रीधरने पाँच सौ ऐसे पक्के पायकोंको भेजा जो भयका नाम नहीं जानते थे। उन्हें दौड़ते हुए, होठोंको चबाते हुए, हाथोंमें चमकती तलवारें लिये हुए तथा अत्यन्त क्रोधभावको प्राप्त हुए जयवतीके पुत्र व्यालने आते देखा / तब रणमें, दानमें और सम्मानमें जिसने छलकी गतिविधियोंको समझ रखा था उस महाबलशाली व्यालने द्वारपालसे पूछा-जो संग्राममें दैत्योंके समान शूरवीर योद्धा घरमें प्रवेश करते दिखाई दे रहे हैं, वे किसके सेवक हैं ? तब द्वारपालने कहा-ये नागकुमारके प्रतिपक्षी (शत्रु ) बन्धु (श्रीधर ) के दास हैं। हे बन्धुजनोंको P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust