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________________ -4.7.9] हिन्दी अनुवाद 6. पाटलीपुत्रको गणिका सुन्दरी जयवर्म राजाने अपने पुत्रको राज्यलक्ष्मी सौंपकर तथा भुवनरूपी कमलको प्रफुल्लित करनेवाले जिनेश्वरको प्रणामकर जिनेन्द्र-दीक्षा ले ली। जिस प्रकार राजाने दीक्षा ली उसी प्रकार निर्मल बुद्धि रानी जयवतीने भी व्रत धारण कर लिया। माता-पिताके चले जानेपर वे दोनों महाबली भ्राता राज्यलक्ष्मीका अनुभव करते हुए मथुरामें रहे। इसी बीच जहाँ सरोवरोंके कमलों तथा रेतोले तटोंपर पक्षी उड़ते दिखाई देते हैं ऐसे पाटलीपुत्र नगरमें श्रीवमं राजा राज्य करता था। उसकी वसन्तमाला नामक भोगिनी पत्नी कान्तिसे तमालको भी जीतती थी। उसके गणिकासुन्दरी नामक पुत्री थी जो रूपमें रंभा एवं शीलमें सीताके समान थी। उसे कोई पुरुष नहीं रुचता था, चाहे वह स्वयं राम अथवा प्रत्यक्ष कामदेव ही क्यों न हो! उसका यह वृत्तान्त सुनकर उन दोनों भाइयोंको उस कन्याको प्राप्त करने की अभिलाषा हुई। उन्होंने प्रियवर्म मन्त्रीके पुत्रके साथ वार्तालाप किया, अपना अगाध स्नेह बतलाया और उस चन्द्रमुख राजीव लोचन दुष्टवचन नामक मन्त्री-पुत्रको अपने राज्यपर स्थापित किया। फिर वे दोनों भ्राता उस कुसुमपुरको गये जहाँ देवगृहोंके शिखरागोंपर देवं बैठते हैं। उन दोनोंको नये कोंपलके समान भुजाओंवाली वसंतमालाकी पुत्रीने देखा और तुरन्त ही उसके मनमें वह लघु कुमार ऐसा प्रविष्ट हो गया जैसे मानो कामदेवने अपना पुष्पबाण छोड़ा हो। उस ऐरावतके सूंड़ समान प्रबलभुज"शाली नरश्रेष्ठको देखकर उसका हृदय एवं शरीर उल्लसित हो 1. : उठा, और उस मृगनयनीने अपने चन्द्रको प्रभाको जीतनेवाले मुखसे उष्ण और दीर्घ निःश्वास छोड़ा // 6 // 7. दोनों भ्राताओंका विवाह तथा कुसुमपुरपर आक्रमण जो ललितांगी सखियाँ इंगित ज्ञानमें कुशल थों उन्होंने यह जान लिया कि राजकुमारीके चित्तको उस पुरुषने चुरा लिया है और उन्होंने जाकर राजासे निवेदन किया कि अब राजकुमारीके उत्तम वरका अवतार हो गया है। राजाने उधर जाकर उस नरश्रेष्ठ पुरुषको देखा और उधर राजकन्याने दोघं निःश्वास छोड़ा / तब राजाने अपने परिवारके कल्याणकी इच्छा करते हुए उन दोनोंको अपने पास बुलाया। उसने देखा कि वे दोनों ही राजकुमार बुद्धिमान हैं, महाप्रतापी हैं, कुल और जातिसे शुद्ध तथा गम्भीर स्वभावी हैं। अतएव उसने जो अपनी महादेवीको सराहनीय एवं महागुणवती सुरसुन्दरी नामकी पुत्री थी तथा जो लक्षणों तथा अनेक गुणरूपी रत्नोंको निधान थी, उसका विवाह ज्येष्ठ राजकुमारके साथ कर दिया / तथा जो कन्या विरहके वेग और सन्तापसे क्षीण थी जो पुरुषोंकी परीक्षा-विधिमें प्रवीण थी, तथा जिसने अपने हृदयको संतोषदायक स्थान प्राप्त कर PP.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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