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________________ -4. 3. 15 ] हिन्दी अनुवाद मुख रहता है / लोभके निग्रह और परिग्रहके प्रमाण द्वारा ही गृहधर्म धारण किया जाता है। जो सूर्यास्तसे पूर्व भोजन करता है और अपने व्रतमें दृढ़ रहता है, वही गृहधर्मका धारी है। मधु, मांस और मद्यका परित्याग करनेवाला सज्जन हो गृहधर्म धारण करता है। जो जानकार है और पंचउदम्बरोंके स्वादका त्यागी है वही गृहधर्म धारण करता है। गृहधर्म उसीके द्वारा धारण किया जाता है जो गुरुओंके अनुसार या परम्परानुसार दिशाओं और विदिशाओंमें गमनागमनकी मात्राको मर्यादा रखता है / वही शिक्षावृत्ति गृहधर्म रखता है जो पापो जीवोंकी उपेक्षा करता है। गृहधर्मधारी वही बुद्धिमान है जो वर्षाकालमें कुछ भी हो बाहर जाना छोड़ देता है। वह गृहधर्म धारी है जो जिनेन्द्र प्रतिमाका ध्यान करता है। जो सामायिक करता है, जो पर्यों में प्रोषधव्रत धारणकर तप सहता है, वही गृहधर्मधारी है। जो पात्रोंको विधिपूर्वक आहार कराता है वही श्रेष्ठतर गृहधर्मको धारण करता है / जो शुद्ध सम्यक्दर्शनसे युक्त है और विधिपूर्वक संन्यास ग्रहण करता है वही गृहधर्मधारी है। ___ जो मदिरा चखता है, मांसका भक्षण करता है तथा कुगुरु और कुदेवोंकी पूजा करता है वह नर नष्ट और पथभ्रष्ट है, वह भोषण दुर्गतिको प्राप्त होता है / / 2 / / / 3. दानके पात्र कौन ? जो झूठे शास्त्रों, कुत्सित आचारों तथा कुत्सित तपस्वियोंमें अनुरक्त होता है, उसे कुपात्र जानो। और जो सम्यकदर्शन तथा पवित्र व्रतोंसे रहित है वह अपात्र है। जो कुदृष्टियोंके गुणोंका कीर्तन तथा लौकिक और वैदिक मूढ़ताओंका वर्जन करता है, सच्चे धर्ममें शंका, कांक्षा व जुगुप्सा नहीं करता तथा सम्यग्दृष्टि होता हुआ सम्यक्त्वको धारण करता है वह दोनों प्रकारके ( बाह्य और आभ्यन्तर ) संयमसे रहित होता हुआ भी अधम पात्र है ऐसा क्रमसे जानना चाहिए / मध्यम पात्र होता है श्रावकका चारित्र्य ग्रहण करनेसे और उत्तम पात्र शुद्ध रत्नत्रयरूप मुनिव्रत धारण करनेसे / अपात्रको दिया हुआ दान शून्य अर्थात् फलरहित जाता है। तथा कुपात्रको दिये हुए दानका कुछ बुरा ही फल होता है। किन्तु तीन प्रकारके पात्रदानसे लोग इस भूतलमें तीन प्रकारके भोगोंको प्राप्त करते हैं / दाताको नवगुणों से युक्त होकर ही अपने घरमें प्रविष्ट मुनिकी पडिगाहना करना चाहिए। उन्हें उच्चासन दिया जाये और अपने हाथसे उनके पैरका प्रक्षालन किया जाये। उनके पैरोंके जलको आदरसे वन्दना की जाये। उनकी अर्चना की जाये और सिर नवाकर उनको प्रणाम किया जाये / मन, वचन और कायकी शुद्धि सहित निर्लोभ भावसे जो मुनिको आहार देता है उसीको पुण्य होता है। अन्य द्वारा दिया गया आहार अरण्यरोदनके समान निष्फल होता है / ... वैसे दया भावसे अनाथों, दोनों और निर्धनोंको भी भोजन, वस्त्र, देहके आभूषण, गायें और भैंसें भूमि और भवनरूपी धन दिया जा सकता है // 3 // P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust
SR No.036460
Book TitleNag Kumar Charita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpadant Mahakavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1972
Total Pages352
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size337 MB
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