________________ 3. 17. 16 ] हिन्दी अनुवाद 55 नखोंसे आहत होकर लौट पड़े। धैर्यवान् नर भी उस नागके रणसे भाग उठे, जैसे गिरिराजसे टकराकर समुद्रको तरंगें वापस लौट जाती हैं। श्रीधर प्राण लेकर पलायन कर गया। तब स्वयं राजा अंकुश लेकर उठ खड़ा हआ। तब राजाके अन्तःपुरकी स्त्रियोंने करुणाजनक आक्रन्दन किया कि ऐसी अवस्थामें कौन कटककी रक्षा करे / यह भीषण और मनुष्यको चर्वी और रक्त निकालकर बहानेवाला हाथी नहीं है, हे माता, वह कोई यम या राक्षस है। समस्त लोग आत्मपराभूत हे पृथ्वीपति, पद्मानन, लक्ष्मीश्वर, परमेश्वर, मुझे आदेश दीजिए; मैं इस हाथीको पकड़ सकता हूँ // 16 // 17. नागकुमारने हाथीको वशीभूत किया तब पिताने पुत्रको छूट दे दो और वह अत्यन्त सहर्ष दौड़ पड़ा। उसने जाकर पर्वतकी धातुओंको रजसे पिंगल वर्ण उस वनहस्तिको देखा। उस हाथीके मदजलसे आकृष्ट हए भ्रमर उसके चारों तरफ मड़रा रहे थे। उसके कानोंकी वायुसे आहत होकर समस्त नभचर आकाश में उड़ रहे थे। उसके पैरोंकी पटकके भारसे धरातल चलायमान हो रहा था। उसके साथ अपना बल तौलकर प्रतिपक्षी हाथी धराशायी हो रहे थे। उसकी दहाड़से त्रस्त होकर दिग्गजोंके समूह चीत्कार कर रहे थे। वह अपने दांतोंकी किरणोंसे पृथ्वो और आकाशतलको उज्ज्वल कर रहा था। शत्रुके सैन्य-समूहको कलकल ध्वनिसे वह भयभीत नहीं होता था। वह अपनी सूंड़की फुफकारसे दशों दिशाओंमें हिमशीकर फैला रहा था। बड़े-बड़े योद्धारूपी वृक्षोंकी गन्ध पाकर वह उनकी ओर अपना सूडादण्ड पसार रहा था, तथा सहस्रों बड़े-बड़े हाथियोंके साथ युद्धके भाररूपी धुराको धारण किये हुए था। ऐसा वह असाधारण हाथी अत्यन्त रोषपूर्वक दौड़ा और वह सुन्दर राजकुमार उससे सिंहके समान भिड़ गया। वह हाथीको ओर बढ़ता, उससे मिलता, बलखाता और उसका उल्लंघन करता एवं क्षण भरके लिए उसके हस्त ( सँड़) को पकड़ लेता, जैसे मानो चन्द्रमा हस्त नक्षत्रसे संग करता है / जब हाथी उसे अपनी संडमें लपेट लेता, तब वह उससे निकल जाता और उसके चारों पैरोंके बीच में छिपकर रह जाता। वह उसके आगे दौड़ता और फिर उसे अपना शरीर दिखलाता तथा उसके वंस ( रीढ़ ) पर चढ़कर वंशोत्तम पुत्रके समान शोभायमान होता। हाथोके कुम्भस्थलपर बैठकर कुम्भराशिमें स्थित शनिश्चरकी भांति दिखाई देता तथा कानसे लगकर कन्यासे नये कर लिया व अपने भुजदण्डोंसे युद्ध कर उसे साध लिया / अब उस गजेन्द्रने कुमारको अपने तीक्ष्ण दन्तानोंसे पीड़ित करना छोड़ दिया और वह चलायमान न होकर निस्पन्द रह गया। जिस प्रकार गोविन्दने गोवर्धनको उठाकर अपना जयजयकार कराया था, उसी प्रकार नागकुमारने उस गजको जीत लिया, जैसे मानो पुष्पोंके समान दाँतवाले दिग्गजको जोता हो। इति नन्न नामांकित महाकवि पुष्पदन्त विरचित नागकुमार चरित्र महाकाव्यमें दिव्य तुरंग तथा नीलगिरि समान हस्तीका वशीकरण नामक तृतीय परिच्छेद समाप्त। ॥सन्धि 3 // ....... . . ... P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust